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मिश्रबंधु

- मिश्रबंधु-विनोद द्वारा नाटकीय विभाग की अधिक उन्नति नहीं कही जा सकती। उपन्यास-विभाग चलता तो पहले से था और प्रौढ़ माध्यमिक तथा अलंकृत कालवाले कुछ ग्रंथ इसी विभाग में पा सकते हैं, तथा इंशाअल्ला आदि के भी ग्रंथ ऐसे ही हैं, तथापि इसका प्रचार भारतेंदु के समय से ही माना जा सकता है । उस काल के औप- न्यासिक अनुवादकारों में बाबू गदाधरसिंह, रामकृष्ण वर्मा, कार्तिक- प्रसाद, गोपालराम गहमर-निवासी तथा रामचंद्र वर्मा के नाम अाते हैं । गोपालराम ने बहुतैरै मौलिक उपन्यास भी भारतेंदु- काल के पीछे लिखे । अनुवादकों के विषय में भापा के अतिरिक्त कुछ अधिक विवरण अनावश्यक है । नूतन परिपाटीवाले लेखकों में महता बन्जाराम ( १६४५), अयोध्यासिंह उपाध्याय (१९४७), किशोरीलाल गोस्वामी (१९४८), देवकीनंदन खत्री ( १६४८), गोपाललाल खत्री ( १६४६), उदितनारायणलाल (१९५०, सकल- नारायण पांडेय ( १९५३ ), श्यामविहारी मिश्र तथा शुकदेव- विहारी मिश्र ( १६५५ ), ब्रजनंदनसहाय ( १९५६), चतुर्भुज- सहाय (१९५६), रूपनारायण पांडेय (१९६०) आदि औप- न्यासिक माने जा सकते हैं । महता लज्जाराम ने लिखे तो दो-तीन अच्छे उपन्यास हैं, किंतु इनके उपदेश, जनता के. विगड़े हुए पुराने विचारों की दृढ़ता के पक्ष में होने से, हानिकारी हैं । उपाध्याय- जी के दो-एक ग्रंथ उपन्यास कहे जा सकते हैं और अच्छे भी हैं, तथापि वास्तव में उनमें भापा के तो परमोत्कृष्ट उदाहरण हैं, किंतु औपन्यासिकपन की बहुत कमी है । गोस्वामीजी के कुछ उपन्यास अच्छे भी हैं, किंतु बहुतों में रसियापन तथा जनता को पसंद साधा- रण भावों द्वारा धनोपार्जन के प्रयल अधिकता से आकर उनकी साहित्यिक उच्चता के बाधक हो गए हैं । देवकीनंदनजी के चंद्रकांता तथा चंद्रकांता संतति कुछ दिन बहुत ही अधिकता से जन-समुदाय