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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद । पाद-टिप्पण के साथ प्रकाशित कराई । नूतन काल से टीका का काम अच्छा हुआ। अनुवादकारों में इस काल शरच्चंद सोम (१६४७) तथा मथुराप्रसाद मिश्र के नाम पाते हैं । सोम ने बारह सजनों द्वारा महा भारत का गद्यानुवाद कराया, तथा मिश्रजी ने कई संस्कृत और बैंगला के ग्रंथों का अनुवाद किया । कई इतर अनुबादर्ता भी हैं, जिनके नाम अन्य संबंधों में कहे गए हैं । निबंधों में, भारतेंदु-काल में, बालकृष्ण भट्ट तथा प्रतापनारायण मिश्र के परिश्रम सामने आते हैं, किंतु इनमें विशेष उत्कर्प नहीं है। पीछे गहमर-निवासी गोपाल- रामजी ने निबंध रचे, और भीमसेन शर्मा भी अच्छे निबंधकार है इनकी रचनाएँ पांडित्य पूर्ण हैं । बालमुकुंदगुप्त-कृत शिवशंभु का चिठ्ठा मनोरंजक निबंध है। महावीरप्रसाद द्विवेदी तथा गंगाप्रसाद अग्निहोत्री द्वारा अनुवादित बेकन-विचार-रलाक्लो तथा निबंध- सालादर्श उपयोगी ग्रंथ है, किंतु अनुवाद-मात्र होने से इनकी हिंदी में महत्ता नहीं है। सरदार पूर्णसिंह ने कुछ भावात्मक निबंध हिंदी में लिखे, जो श्रेष्ठ थे । इनके निवध पत्रिकाओं से लेख-मान्न थे, किंतु थे उत्कृष्ट । बाबू श्यामसुंदरदास ने कई अच्छे निबंध रचे । लाला कन्नोमल के दार्शनिक निबंध उच्च कक्षा के हैं, किंतु उनमें कुछ-कुछ मौलिकता की कमी समझी जाती है। हम (श्यास- विहारी मिश्र तथा शुकदेवविहारी मिश्र)ने प्रात्म-शिक्षण-नामक दो-ढाई सै पृष्ठों का निबंध लिखा, जो द्वितीयावृत्ति तक पहुंच चुका है। हिंदू-धर्म पर हमारे निबंध सुमनोंजलि तथा भारतवर्ष के इतिहास के प्रायः चार सै पृष्ठों पर विस्तृत हैं । हम (शुकदेव- विहारी मिश्र ) ने हिंदी-साहित्य का भारतीय इतिहास पर प्रभाव- नामक एक और निबंध पटना-विश्वविद्यालय के लिये लिखकर वहीं व्याख्यानों के रूप में पढ़ा। यह ३३४ पृष्ठों का ग्रंथ है।