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मिश्रबंधु

पूर्व नूतन हमारे यहाँ निबंध-ग्रंथ हैं तो अच्छे, किंतु उल उच्च श्रेणी के नहीं हैं, जैसे अंगरेजी श्रादि में पाए जाते हैं । राजनीतिक विषयों को ओर उचित कारणों से भारत का ध्यान बहुत अधिकता से लगा हुआ है, किंतु इस बात से अन्य उपकारी विषयों की उन्नति कुछ-कुछ रुकी हुई अवस्य है । यही दशा निबंध की है। भारतीय हिंदी-लेखक संख्या में हैं तो बहुत अधिक, किंतु उनमें से बहुतेरों में स्वावलंबन एवं विस्तृत ज्ञान की मात्रा बटी हुई है। ऐसे लोगों की दशा बहुत करके रूप-संहकवत् है, जो अपने परम संकीर्ण संसार से भागे बड़कर मानो कुछ जानते ही नहीं। हमारे यहाँ बीसवों शताब्दी में भी ऐसे विषयों पर वाद-विवाद हुआ करते हैं, जो उन्नत देशों में १५वी, १६वीं शताब्दी में ही निणीत हो गए थे। ऐसी दशा में उच्च कोटि के निबंध भावे कहाँ से ? अभी ज्ञान ही विस्तृत नहीं है। आशा है, ऐसा समय भी शीघ्र ही आयेगा, जब हम लोग अपनी भाषा में सभी प्रकार के ग्रंथ देखेंगे । समालोचना आदि भी निबंध से ही पाती हैं, किंतु हमने इनके कथन अलग किए हैं । गवेषणा शब्द से पुरातत्य-संबंधी प्रयत्न भी लंबंध रखता है, किंतु हम यहाँ केवल साहित्यिक गवेषणा का • कथन करते हैं। इस संबंध में भारतेंदु-काल में ठाकुर शिवसिंह सेंगर तथा डॉक्टर सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने अच्छा श्रम किया। इधर पूर्व नूतन परिपाटी-काल में कुछ काम हम(मिश्नबंधु )ने हिंदी- ग्रंथों की खोज, मिश्रबंधु-विनोद तथा हिंदी-ना -नवरत्न द्वारा किया तथा वावू हीरालाल एवं बाबू श्यामसुंदरदास खत्री ने भी श्लाघ्य परिश्रम A किया है। समालोचना का कुछ-कुछ काम प्राचीन आचार्य लोग गुण-दोष. कथन के अध्यायों में करते आए थे, किंतु उसे विशिष्ट गुण-दोप- न्यन से बढ़कर समालोचना कहना शोभा नहीं देता । दासजी ने