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मिश्रबंधु

शेष कविगण जागा उदाहरण-- जह मन, पवन न संचरइ, रवि शशि नाह प्रदेश . तहि वट चित्त बिनाम करु, सरहे कहिन उवेश। "पंडिअ सअल सत्य वृक्खाण देहहि बुद्ध बसंत न "श्रमणागमण गतेन विखंडिअ ; तोबि णिलज भनइ हँड पंडिन।" "जो भत्रु सो निया (या ? ) ण खलु, भवु न मरणहु पएण" "एकसभावे निमलमइ पडिवगण " "घोरें धारें चंदमणि जिमि उज्जोय करे परमसहासुह एखुकरणे, दुरिमा अशेष हरेइ।" "जीवंतह जो नउ जरई, सो जरासर गुरु उपएसें बिमलमइ, कोई।" इनके कुछ गीति पञ्च- विरहिस, होइन पर रागद्वशाख "नाद न बिंदु न रवि न शशि-मंडल , चित्रराय सहावे मूकल । ६० उजु रे उज्जु छाडि मा लेहुरे बंक , नियहि वोहिमा जाहुरे लंक । ६० हाथेरे काकाण मा लोउ दापरण, अपणे अपा बुरुतु निन-मण । ६० सोइ दुजण सांगे अवसरि जाइ । ६० नाम दाहिण जो खाल विखला, सरह भणइ बप उजुटि भाइला" ध्रु० पार - उमारे गजिइ.