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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद राग भैरवी कान गावड़ि खंटिमण के बाल, सद्गुरु चणे धर पतवाल । चीन थिर करि धहुरे नाही, अन उपाए पारण जाई । ध्रु० नौवाही (नौवामा) नौका टागुन गुणे, मेलि मेल सहजें जाउण श्राणे । ध्रु० वाट अभय खाल्टबि बलया, भव-उलोलें पत्रवि बोलिया। ध्रु० कुल लइ खरे सांते उजाय, सरह भणइ ग (अ) णे पमाएँ । ६० नाम--(३) शबरपा (सिद्ध ५)। समय-सं०८२५ के लगभग । ग्रंथ-( 1 ) चित्तगुह्यगंभीरार्थगीति, ( २ ) महामुद्रावत्र गीति, (३) शून्यता दृष्टि, (४) खडंग योग, (५) लहजशंबर- स्वधिष्ठान, (६) सहजोपदेश स्वधिष्ठान । विवरण-ये उपर्युक्त सरहपाद के शिष्य तथा गौड़ेश्वर महाराज धर्मपाल के लेखक लूहिपा के गुरु थे । संभव है, उपर्युक्त ग्रंथों में कुछ संस्कृत या पाली के भी हों । महाराज धर्मपाल का समय सं० ८२६ से १६६ तक है । एक शबरपा ई० दसवीं शताब्दी में भी हुए अवधूतीपा के गुरु थे। उनकी भी पुस्तकें संभव है, भाबरपा की पुस्तकों में शामिल हों । ये ग्रंथ तंजूर के तंत्रखंड हैं। वह मैत्रीपा उदाहरण- "ॐचा-ऊँचा पावत तहिं बसाइ सवरीबाली, सोरंगि पीच्छ परहिण सबरी गिक्त संजरी ।