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मिश्रबंधु

सं० १९४७ पूई नूतन १७५

दरस-उपासी प्रेम-रस की पियासी जाके पद की सुदासी कहा दीठि की बिकानी है। श्रीमुख-मयंक की चकोरी ये सुखोरी बीच बज की फिरत है है भोरी दुख सानी है जिन्है अति मानी चख पूतरी-सी जानी हमसों तेरारि ठानी अब कूवरी मिठानी है ॥ १ ॥ सुंदर सुरंग अंग - अंग पै अनंग वारों, जाके पद-पंकज पे पंकज दुखारो है पीत पद वारो मुख मुरली संवारो प्यारो कुंडल झलक सिर मोर - पंख धागे है। कोटिन सुधाकर की सुखमा सुहात जाके, मुख माँ लुभाती रमा रंभा-सी हजारो है; नंद को दुलारो श्रीजसोदा को पियारो जौन भक्त सुख सारो सो हमारो रखबारो है ॥ २ ॥ 3 समय-संवत् १९४७ नाम-(३५७१ ) अयोध्या सिंह उपाध्याय (हरिऔध)। जन्म सं0-- 0-१९२२ (निजामाबाद, जिला आजमगढ़)। रचनारंभ-१९४७ ॥ ग्रंथ-वेनिस का बाँका, रिपवान वेंकल, नीति-बंधन, विनोद- वाटिका, नीति-उपदेश-कुसुम ( आदि अनुवाद ग्रंथ, उपन्यास), ठेठ हिंदी का ठाट, अधखिला फूल, रुक्मिणी-परिणय नाटक, प्रिय- प्रवास (१७ अध्याओं में तुकांत-हीन खड़ी बोली काव्य), चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, हिंदी-साहित्य का इतिहास, रस-कलेश आदि प्रायः २५ रचनाएँ।