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मिश्रबंधु

मिनबंधु-विनोद सं० १९४७ विवरण-आप वर्तमान काल के बड़े ही प्रतिभाशाली गद्य- लेखक तथा कवि हैं। आपको लोग कवि-समाट् कहा करते हैं । हमारे मित्र भी हैं । आपने कुछ अंगरेजी पढ़कर राज-सेवा भी की, और सदर कानूनगो के पद से पेंशन लेकर हिंदू-विश्वविद्यालय में अवैतनिक हिंदी-प्रोफेसर के पद को सुशोभित किया है । संस्कृत- मिश्रित, साधारण, कठिन आदि कई प्रकार का गद्य सुगमता से लिखते हैं । भाषा के श्राप वास्तव में सिद्ध-हस्त लेखक हैं । बंगला • तथा अँगरेज़ी से कई ग्रंथों का अनुवाद कर चुके हैं, जो उच्च कोटि के हैं। वेठ हिंदी का ठाट भारतीय सिविल सर्विस में पाठ्य प्रय रहा है । साहित्य-सम्मेलन के सभापति तथा पटना-विश्वविद्यालय में रामदीन-रीडर: भी रह चुके हैं। अंतिम पद पर आपने प्रायः ५००० पृष्ठों का हिंदी-साहित्य का इतिहास रचा, जो उस विश्व- विद्यालय छपा रहा है। प्रिय-प्रवास महत्ता-पूर्ण ग्रंथ है, जो खड़ी बोली में महाकाव्य के ढंग पर बना है। दोनो चौपदे ग्रंथों में साहित्यिक रोचकता की कुछ कमी पड़ जाती है। आपके उप- न्यासों में भापा का चमत्कार तो बहुत श्रेष्ठ है, किंतु कथानक का धुमाव वैसा बढ़िया नहीं आया है, जैसा इस महत्ता के लेखक से श्राशा की जा सकती थी। हिंदी को आपसे बड़ा लाभ पहुंचा है। ठेठ हिंदी के ठाट में भावुकता अच्छी है। निय-प्रवास में भगवान् तथा राधिकाजी, दोनो लोकोपकारी व्यक्तियों के रूप में सामने आते हैं। गारिकता हटी हुई है, तथा भगवान् के चरित्रों के वर्णन से प्राचीन साहित्यिक अत्युक्ति निकाली जाकर उनका आडंबर-शून्य असंभवनीयता से रहित रूप सामने आता है। संस्कृत के घुमावदार छंद लच्छेदार संस्कृत-मिश्रित वाक्यांशों से पूर्ण, खड़ी बोली में सफलता पूर्वक व्यक्त किए गए । प्राकृतिक वर्णनों का भी प्रयत्न किया गया है, किंतु कई स्थानों पर सूची-सी