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मिश्रबंधु

सं० १९४७ पूर्व नूतन गिनाई जाने लगी है। साहित्यिक स्वाद प्राचीन संस्कृत-महाकाव्यों के दंग पर प्रदान किया गया है, किंतु भाषा तथा भाव कुछ ऐसे हैं कि कहीं-कहीं प्रारोचन की मात्रा यथावत् नहीं आती । गोकुलनाथ गोपीनाथ तथा मणिदेव के महाभारत में वर्णन इतना ऊँचा नहीं है, जितना कि प्रियप्रवास में, किंतु कधन-प्रणाली कुछ ऐसी है कि दस बार पढ़कर भी ग्रंथ की पुनरावृत्ति की ओर चित जाता है । यह बात नियनवास में क्या, वर्तमान काल के बहुतेरै उच्च ग्रंथों तक में नहीं मिलती। वर्णन-प्रणालियाँ हमारे यहाँ कई हैं। पहले हम वाल्मीकि, व्यास प्रादि की प्रथा देखते हैं, जो सीधा- सादा सांगोपांग कथन करती चली जाती है और तो भी पूरा आरो- चन देती है । कालिदास की प्रणाली कुछ इस वर्णन-पूर्णता को लिए हुए है और कोरे साहित्य की ओर भी झुकती है। फिर भी उसमें पारोचन की मात्रा प्राचुर्य से है । श्रीहर्ष की प्रणाली में काव्यत्व कुछ बढ़ा हुआ तथा प्रारोचन घटा हुआ है । हमारे यहाँ गो. तुलसीदास भी वर्णन-पूर्णता पर विशेष ध्यान दिए हुए हैं; किंतु कोरे काव्यत्व को भी नहीं छोड़ते । केशवदास में कथा की कमी और पांडित्य की वृद्धि है, किंतु रामचंद्रिका के प्रथमाछ में आरोचन बहुत ख़ासा है। कैसा भी वर्णन हो, आरोचन काव्य का प्राण है। यपि निय-प्रवास ऊँची श्रेणी का ग्रंथ है, तथापि प्रारोचन ठेठ हिंदी के ठाठ में अधिक है। कुल मिलाकर हम उया- ध्याजी को सत्कवि मानते हैं। नाम-(३४७२) कन्हैयालाल पोद्दार सेठ। आपका जन्म जयपुर-राज्यांतर्गत रामगढ़ (सीकर) में सं० १६२८ में हुआ । यह मारवाड़ी-समाज के सुप्रसिद्ध सेठ गुरुसहाय- मलजी के पौन और मथुरा के प्रख्यात सेठ जयनारायणजी के पुत्र हैं। उक्त समाज में व्यापारी दृष्टि से सेठ ताराचंद-धनश्याम का कारो-