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मिश्रबंधु

१७८ . मिश्रबंधु-विनोद सं० १९४७ पार तथा घराना प्रतिष्ठा-पूर्ण है, और सेठ कन्हैयालालजी के जन्म से यह घराना विशेष कीर्ति-संपन्न हुआ है। सेठजी अच्छे विद्वान् हैं। आपकी साहित्यिक सेवा हिंदी-संसार में महत्त्व-पूर्ण है । सं० १९४७ में भर्तृहरि-शतक' का सेठजी-कृत हिंदी-पद्यानुवाद प्रकाशित हुआ । इसके अतिरिक्त श्रापने 'गंगालहरी', 'हिंदी-मेघदूत-विमर्श', 'पंचगीत' आदि अनुवादित ग्रंथ बनाए । 'पंचगीत' से अभिप्राय श्रीमद्भागवत के कई अध्यायों के समश्लोको अनुवाद का है। आपकी विशेष महाव-पूर्ण रचनाएँ 'अलंकार- प्रकाश' और 'काव्य-कल्पद्रुम' हैं। इनसे श्रापकी साहित्यिक आचार्यता का परिचय मिलता है । सरस्वती मासिक पत्रिका में इनकी 'प्रेम-सरोवर', 'कोकिल', 'बंबई का समुद्र-तट श्रादि स्फुट कविताएँ निकल चुकी हैं। 'महाकवि भारवि'-शीर्पक आपका लेख विद्वत्ता पूर्ण समझा जाता है। यह बड़े गौरव की बात है कि अपने व्यापारी कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी सेठजी ने हिंदी- साहित्य की महत्त्व-पूर्ण सेवा की है और कर रहे हैं। उदाहरण- अलि-पुंजन की मद गुंजन सों बन कुंजन मंजु बनाय रह्यो लगि अंग अनंग तरंगन. सों रति रंग उमंग बढ़ाय रह्यो । बिकसे सर कंजन कंपित के रज रंजन लै छिरकाय रह्यो चलि मंद सु-मंद प्रभंजन ये मकरंद दशो दिशि छाय रह्यो । नंदनंदन के स्मित श्रानन पास लगी रहै कान सदा भर जी अधरामृत को रस पान करे ब्रजगोपिन सों न रहै बरजी। कर जोरि कै तोहि प्रणाम करौं मुरली ! सुनु एक यही अरजी मुरलीधर सों मम दीन दशा कहियो फिरि है उनकी मरजी। उन्नत पीत उरोज लसैं, युग दीरघ चंचल दीठि विलोकित गेह की देहरी पै स्थित है, पिय भागम के उत्तसाह प्रलोभित । . , । . 3