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मिश्रबंधु

सं० १९४७ पूर्व नूतन १७६ कंचन कुभ कुसुभ सजे पट कंचन बंधनवार सुशोभित ; मंगल में उपचार किए विन ही श्रम कंजमुखी समयोचित । नास-(३४७३) किशोरीलाल गोस्वामी। वृंदावन-वासी इन गोस्वामीजी का जन्म सं० १९२२ में हुआ। श्राप संस्कृत तथा हिंदी के बहुत अच्छे पडित थे। आपने कई ग्रंथ संस्कृत में, प्रायः १०० हिंदी-ग्रंथ स्फुट विषयों पर, ६५ हिंदी- उपन्यास लिखे, और उपन्यास मासिक पुस्तक बहुत दिन तक निकाली। लेखों में आपकी हिंदी में संस्कृत के शब्दों का बाहुल्य रहता है, तथा उपन्यासों में साधारण भाषा का । अापने सरत्न- माला-नाम्नी एक पय-रचना भी की है। इक्कीसवें हिंदी साहित्य- सम्मेलन के श्राप सभापति थे। १९८६ में आपका शरीरांत हो गया। आपके उपन्यास ग्रोरपीय श्रादि ग्रंथों पर भी अवलंबित हैं तथा कहीं-कहीं उनमें रसियापन की मात्रा कुछ बढ़ गई है। आपने उपदेशों पर अधिक ध्यान न देकर ऐसे उपन्यास लिखे हैं, जो संसार में प्रचलित खूब हों । कुछ दिन आपको उनसे चार-पाँच सहस्र की वार्षिक अाय रही भी । गोस्वामीजी हमारे परमोत्कृष्ट गद्य-लेखकों में से थे। नाम-(३४७४ ) गणेशविहारी मिश्र । जन्म-काल सं० १९२२१ कविता-काल सं० १९४७ । . विवरण - इनका जन्म संवत् १९२२ में इटौंजा में हुआ था। इनके पिता पंडित बालदत्त मिश्र प्रसिद्ध महाजन, ज़मींदार और कवि थे। इन्होंने बाल्यावस्था में हिंदी, संस्कृत और फारसी पढ़ी, और संवत् १९३६ में इटौंजा में एक कपड़े की दूकान खोली, जो दस वर्ष तक चलती रही। सं० १९४६ में पिताजी ने अस्वस्थ होने के कारण घर का काम करना छोड़ दिया। उसी समय से दूकान उठाकर