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मिश्रबंधु

3 . १८२ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९४७ घर को जानो लेउ बलैया होली है भइ होली है। जैसे लिवरल तैसे टोरी जो परनाला सोई मोरी । दोनो का है पंथ अघोरी होली है भइ होली है । नाम--(३४७७) राधाकृष्णदास । यह महाशय काशी के रहनेवाले वैश्य तथा भारतेंदु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई थे । इनकी मृत्यु २ एप्रिल सं० १६६४ सें, केवल ४२ वर्ष की अवस्था में, हो गई । स्वयं भारतेंदु ने इन्हें, हिंदी लिखने को प्रोत्साहित किया था और धीरे-धीरे यह विशद हिंदी लिखने भी लगे थे। यह महाशय बड़े ही सज्जन पुरुष और हमारे मित्र थे। इनसे मिलकर चित्त प्रसन्न हो जाता था। इन्होंने नागरी-प्रचारिणी सभा की सदैव सहायता की। यह उसके कुछ समय तक मंत्री और ग्रंथमाला के संपादक रहे । हमारे बाबू साहब काव्य पर भी विशेष ध्यान रखते थे। बहुत-से प्राचीन कवियों का थोड़ा-बहुत हाल भी इन्होंने लिखा है । आपने भारतेंदुजी के कालचक्र, प्रशस्ति-संग्रह, सती- प्रताप, राजसिंह आदि अधूरे ग्रंथों को पूर्ण किया । इनके रचित ग्रंथों के नाम नीचे लिखे जाते हैं-- आर्य-चरितामृत, धर्मालाप, मरता क्या न करता, स्वर्णलता, बापा रावल, दुःखिनी वाला, निःसहाय हिंदू, सामयिक पन्नों का इतिहास, बानू हरिश्चंद्र, सूरदास, नागरीदास और बिहारीलाल के संक्षिप्त जीवन-चरित, महारानी पद्मावती, राजस्थान केसरी नाटक, दुर्गेश- नंदिनी, महाराणा प्रताप आदि। इन्होंने नहुष-नाटक, सूरसागर और सक्त-नामावली का संपादन भी अच्छे प्रकार किया। इनका गद्य अच्छा होता था और पछ भी यह साधारणतया अच्छा लिखते थे। इनके नाटक रुचिर हैं, पर उनमें कहीं-कहीं भारतेंदु के नाटकों की छाया आ गई है । बाबू साहब एक प्रकृष्ट लेखक और श्रमशीन थे साहित्यिक पुरुष ।