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मिश्रबंधु

सं०.१६१८ पूर्व नूतन । गंगावतरण, काव्य पर आपको हिंदी ऐकेडेमी से ५०० रु० पुरस्कार में मिले । आप सूर-सागर को शुद्धता-पूर्वक संपादित करने में व्यस्त थे कि १९८६ में आपका शरीरांत हो गया। आपकी रचना पद्माकरी ढंग की समझी जाती है। उसमें पुराने प्रकार के साहित्यिक भाव प्राचुर्य से हैं । अापके छंद तथा भाव वाचीन कवियों की शैली लिए हुए होते थे, किंतु ऐसे कथन और विचार प्राचीन काल से कई बार कहे जाने के कारण अब कुछ आरोचन-शून्य और फीके लगने लगे हैं। आपमें प्राचीन प्रथा का साहित्य-गौरव खासा था, किंतु नवीनता की कमी से कुछ फीकापन झलक जाता था। हमारे प्राचीन मित्र थे और जब लखनऊ आते थे, तब हमसे प्रायः मिल लेते थे तथा देर तक बातें करते थे। आपके छंदों में उमंग की मात्रा पदमैत्री- युक्त अच्छी थी। गंगावतरण, हरिश्चंद्र आदि रचनाएँ सभ्य-समाज में नादर की दृष्टि से देखी जाती है। सूर और विहारी पर रतकार- जी ने अच्छा परिश्रम किया था। नाम-(३४८० ) जंगलीलाल भट्ट (जंगली), पैतेपुर, जिला सीतापुर। रचना--स्कुट काव्य जन्म-काल-सं० १९२३ । समय-११३८ । विवरण----यह सीतापुर में शिक्षक हैं। कविता सरस तथा उत्कृष्ट करते हैं। कोई ब्रथ नहीं बनाया है, परंतु स्फुट छंद बहुत-से रचे हैं। उदाहरण-- विलुलित अलके ललित माल बाल मुख बनक बिसाल महताबी दरसति है; लोभी लंक लचनि नचनि चितवनि चख चंचल तुरंग - सी सिताबी दरसति है।