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मिश्रबंधु

ऊपर मिश्रबंधु-विनोद सं० १९४८ सौरभित फूल-सी अतूल सुख-मूल दुति जंगली दुकूल मैं न दाबी दरसति है; फाबी सित कंचुकी मैं उरज सहाबी श्राब अपूरव गुलायी दरसति है। नाम--(३४८१) देवकीनंदन खत्री, काशी-निवासी । जन्म-काल-सं० १९१८ (मुज़फ़्फ़रपूर में) कविता-काल-सं० १९४८ के लगभग । विवरण-२४ वर्ष की अवस्था तक यह सुज़फ्फरपुर एवं गया-ज़िले में रहे और इसके पीछे काशी में रहने लगे। इन्होंने जंगलों की अच्छी सैर की थी। अपने देखे हुए स्थानों एवं जंगलों का वर्णन इन्होंने अपने उपन्यासों में खूब किया । इनके बनाए हुए चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, नरेंद्रमोहिनी, कुसुम-कुमारी, वीरेंद्रवीर, काजर की कोठरी, भूतनाथ श्रादि उपन्यास परम लोकप्रिय एवं मनोहर हैं। इनके उपन्याल ऐसे रोचक हैं कि बहुत-से लोगों ने उन्हें पढ़ने ही को हिंदी सीखी । इन्होंने पंडित माधवप्रसाद के संपादकत्व में सुदर्शन-नामक एक मासिक पत्र भी निकाला था, पर वह बंद हो गया। इनकी देखा-देखी हिंदी में बहुत-से उपन्यास-लेखक हो गए हैं, और इस विभाग की अच्छी पूर्ति हुई है। इनके उपन्यासों में असंभव बातें बहुत रहती हैं, जो अनुचित हैं। इनकी भाषा बहुत सरल होती है और वह मनोहर भी है। इनके उपन्यासों में लोक-हित-साधन का बहुत विचार नहीं रहता । इनका शरीरपात हो चुका है। इनके पहले तिलिस्म, रूप बदलने से व्यक्तित्व का दिखलौवा बदलाव आदि का पूर्वरूप रेनाल्ड्स की पीतलवाली मूर्ति नामक उपन्यास में है। ऐले ही विचार कुछ अन्य योरपीय उपन्यासों में हैं । फिसाना-आजाद में ऐयारी का पूर्वरूप है । सं० १६५३वाले एक वैष्णवता-विवर्द्धक हिंदी के उपन्यास में ऐयारी बढ़ी हुई है। यह बहुत बड़ा ग्रंथ है।