पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/१९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१९२
१९२
मिश्रबंधु
सं० १९४८

पूर्व नूतन फिर भी बाबू साहब ने चंद्रकांता तथा चंद्रकांता संतति में तिलिस्म और ऐयारी को बहुत रोचक रूप से ऐसा बढ़ाया है, जैसा इनके पूर्व- वर्ती लेखकों ने न कर पाया था। इस प्रकार के और भी बहुतेरे ग्रंथ इतरों ने बनाए, पर उन यूँ दो भेंट न कर सके । भूतनाथ में तिलिस्म और घटनाओं के रहस्य इतने बड़ गए हैं कि कोई घटना हद होती ही नहीं । भूतनाथ अधिकाधिक घटना-गोपन से बिल्कुल विगड़ गया । बाबू साहब ने इसका आदिम भाग ही लिखा भी था और पीछे का बिगड़ा हुआ भाग इतरों का है। चंद्रकांता संतति इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना है। नाम-(३४८२) भोगवतीदेवी । ग्रंथसंतमत-प्रकाशिका । मृत्यु-काल-सं० १९७३ । विवरण--यह मुंगेर-ज़िलांतर्गत गोगरी के बाबू संतरामजी की जी थीं । इस समय इनके इकलौते पुत्र बाबू जयदेवरामजी बनेली राज्य में एक उच्च कर्मचारी हैं। इनकी कविता भक्ति-रस की है। उदाहरण विनय सुनहु मेरी सातु भवानी । मैं अति दीन मलीन हीन मति, द्रवहु दुखित मोहिं जानी। कृपा करहु भव पार उतारहु, देहु चरण गुण-खानी । मुक्ति पदारथ तव चरणन में, पावहिं सुर, मुनि ज्ञानी । पद-पंकज-रज देहु कृपा फरि, निज किंकरि मोहि जानी। शुभ-निशुभ को नाश कियो तुम देवन त्रास. मिटानी। हरहु सोच मोहिं पार लगावहु, दया करहु स्वानी। नाम-(३४८३ ) रामदास गौड़ एम० ए०, बनारस । जन्म-काल-सं० ११३८ । रचना-काल-सं० १९४८