- सं० १९४८
पूर्व नूतन फिर भी बाबू साहब ने चंद्रकांता तथा चंद्रकांता संतति में तिलिस्म और ऐयारी को बहुत रोचक रूप से ऐसा बढ़ाया है, जैसा इनके पूर्व- वर्ती लेखकों ने न कर पाया था। इस प्रकार के और भी बहुतेरे ग्रंथ इतरों ने बनाए, पर उन यूँ दो भेंट न कर सके । भूतनाथ में तिलिस्म और घटनाओं के रहस्य इतने बड़ गए हैं कि कोई घटना हद होती ही नहीं । भूतनाथ अधिकाधिक घटना-गोपन से बिल्कुल विगड़ गया । बाबू साहब ने इसका आदिम भाग ही लिखा भी था और पीछे का बिगड़ा हुआ भाग इतरों का है। चंद्रकांता संतति इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना है। नाम-(३४८२) भोगवतीदेवी । ग्रंथसंतमत-प्रकाशिका । मृत्यु-काल-सं० १९७३ । विवरण--यह मुंगेर-ज़िलांतर्गत गोगरी के बाबू संतरामजी की जी थीं । इस समय इनके इकलौते पुत्र बाबू जयदेवरामजी बनेली राज्य में एक उच्च कर्मचारी हैं। इनकी कविता भक्ति-रस की है। उदाहरण विनय सुनहु मेरी सातु भवानी । मैं अति दीन मलीन हीन मति, द्रवहु दुखित मोहिं जानी। कृपा करहु भव पार उतारहु, देहु चरण गुण-खानी । मुक्ति पदारथ तव चरणन में, पावहिं सुर, मुनि ज्ञानी । पद-पंकज-रज देहु कृपा फरि, निज किंकरि मोहि जानी। शुभ-निशुभ को नाश कियो तुम देवन त्रास. मिटानी। हरहु सोच मोहिं पार लगावहु, दया करहु स्वानी। नाम-(३४८३ ) रामदास गौड़ एम० ए०, बनारस । जन्म-काल-सं० ११३८ । रचना-काल-सं० १९४८