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मिश्रबंधु

सं० १९४६ पूर्व नूतन 9 । क्षमा दया औदार्य अरु मार्दव मन संतोप , आर्यव शांती-सहित जो बी० एल० वह निर्दोष । अशुभ कर्म अँधियार में साथ देइ कुछ नाहि , बी० एल० छाया मनुज को तजे अँधेरे माँहि । बहु सुनवो कम बोलबो, यह है परम विवेक बी० एल० यों विधि ना रचे, कान दोय जिम एक कड़े बचन तिहुँ काल में सजन बोलत नाँहि , बी० एल० यो विधि ना रचे हाड़ न जिह्वा माँहि । नाम--(३४८७) भुवनेश्वर मिश्र । यह दरभंगा-निवासी हिंदी-गद्य के एक प्रतिष्ठित लेखक थे। आपका जन्म सं० १९२४ में हुआ । अापने अनेकानेक उत्कृष्ट लेख कई पत्रों में छपवाए और कवि-परिचय, कवि-सोपान, परलोक, घराऊ घटना, बलवंत-भूमिहार श्रादि कई ग्रंथ रचे, जिनमें घराऊ घटना हमारे देखने में आया है। यह स्वभावोक्ति एवं हास्यरस-पूर्ण ग्रंथ है। मिश्रजी की लेखन-शौली बड़ी विलक्षण एवं चमत्कारिक है। यह महाशय दरभंगा में वकालत करते थे । आप चंपारन-चंद्रिका तथा हिंदी वंगवासी के संपादक भी रह चुके हैं। नाम-(३४८-) रामनारायण मिश्र, काशी । ग्रंथ--जापान-दर्पण। जन्म-काल-सं० ११२४ विवरण-श्राप हिंदी के सुलेखक हैं । आपने बहुत दिन तक शिक्षा-विभाग में डिप्टी-इंस्पेक्टरी के पद पर नौकरी की । इस समय श्राप हिंदू-यूनिवर्सिटी के स्कूल में हेडमास्टर हैं। आप हिंदी का बहुत काम कर रहे हैं । आपने और भी हिंदी की कुछ पुस्तकें लिखी हैं। हाल ही में अपने ग्योरप-प्रवास पर एक अच्छी-सी पुस्तक दो अन्य महाशयों के साथ लिखी है।