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मिश्रबंधु

सं० १६४६ पूर्व भूतन १६५ 3 j सुभ सुचि ताकी दीह दुति सविता की नहीं; ऐसी छविताकी जैसी सातु ललिता की है। २। अँगराय प्रभा भरी श्रोछे उरोज महारस के नद बोरै लगी सखियान सों सैनन वैगन मैं कछु चातुरी के चित चोरै लगी। नृप श्रीनिधि भावती भाग भरी लघु लाजन सों हा जोरै लगी; मृदु मंद हँसीसों नसीली चितै दिन व ते पियूप निचोरै लगी। ३ । धन संपति कुल काय श्रीनिधि लहि नहिं गरब गहु ; बढ़ि के ज्यों वटि जाय समौ परे ससि बदि घटै। ४ । श्रीनिधि यों छवि देहिं अँखियाँ अलकन के तरे; खंजरीट गहि लेहि मदन बधिक जनु जाल ले।। यों कानन के तीर नैन कोर काजल - कलित कड़ी कलंक लकीर श्रीनिधि मानहुँ चंद बिच । ६ । कैधौं बेलि सुंदर सिंगार सुधा सींची कैचौं खींची विधि रेख जोबनागम सदन कैचों धरी नीलम छरी उरज नामि मध्य उपटी किधों या बेनी पीठि की हदन तें। श्रीनिधिजू पांति के पिपीलिका बनायो कैधौं मंत्र शिव मदन चलायो है बदन तें युगुल उरोज बीच राजी रोमराजी किधौं व्दत सु पनगी पिनाकी के सदन तैं । ७ । नाम--(३४६० ) सीताराम उपाध्याय, पिलकिला, जौनपुर। जन्म-काल-सं० १९२४ । ग्रंथ-चैतन्य-चंद्रोदय, (२) बामा-मनरंजन, (३) नाम- प्रताप, (४) शृंगारांकुर, (५) काव्य-कलापिनी, (६) मंडली- मंडन, (७) रंभा-शुक-संवाद, (८) चैतन्य-चंद्रिका, (१) पूर्ति- प्रमोद ७ भाग, (१०) पूर्ति-प्रभाकर । . .