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मिश्रबंधु

मिश्रवंधु-विनोद सं० १९४६ 3 उदाहरण- यौवन रूप अनुपम पायक क्यों चलती हो इती इतरानी; नाहक याहि गवाइए ना फिरि ऐसो समै मिलिहै न सयानी। प्रेम-पयोधि में पानि पखारि ले ज्यों बहती दरयाव के पानी; हौस पुराइ ल्यो जा जिय की हँसि-बोलि-बुलाइ मनोहर वानी । जादिनतें तेरी तरुनाई यह श्राई बीर कहर मचाई हाय सहर सहर है गैल-गैल देखिने को छैल ललचाए रहैं घूमत दिवाने बने ठहर-ठहर है। भूले ना हिये में यह नजर नुकीली पड़ीघही छिन पल दिन पहर-पहर है; गोलन कपोलन पै अधर असोलन पै गजब गुराई रही लहर-लहर है। नाम-( ३४६१) सुखराम चौवे ( कवि गुणाकरजी), ग्राम रहलो, जिला सागर, (मध्य प्रांत)। जन्म-काल-सं० १९२४ । कविता-काल-20 १६४६ के लगभग अंथ-(1) वर्ण-प्रबोध, (२) गीत-प्रबोध, (३) लिपि- प्रबोध, (४) महिला-गान-माला (तीन भाग), (५) व्यायाम- पुस्तक, (६) हिंदी-प्रवेशिका (दो भाग), (७) कान्यकुब्ज- दर्पण, (८) 'स', 'म' का झगड़ा, (२) पानी-पंचक, (१०) तुतसी-महिमा (अमुद्रित), (११) तुलसी-कृत रामायण (समा- लोचनात्मक ग्रंथ, असुद्रित)। विवरण- -~ -आप कान्यकुब्ज ब्राह्मण पं० गणेशप्रसादजी चौबे के पुत्र हैं । आप सुकवि ही नहीं, वरन् सुयोग्य वक्ता तथा लेखक भी हैं। आपकी रचनाएँ विशेषतया 'बाल-साहित्य, वीर-साहित्य, हास्य- रस, नीति, प्रीति आदि विषयों से संबंध रखती हैं । प्रायः 'गुणाकर' उपनाम से कविता की है। आपके काव्य-गुरु एवं विद्या-गुरु सागर- निवासी पं. जगन्नाथप्रसादजी थे । इस समय यह महाशय पेंशन प्राप्त