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मिश्रबंधु

सं. १६४६ > 7 पूर्व नूतन कर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। [पं० रामनाथ शुक्ल, सॉरिस-कॉलेज, नागपूर द्वारा ज्ञात ] । उदाहरण- हमारी उनमें भक्ति महान । सहज प्रसन्न बदन है जिनका, तन है तेज निधान पुष्ट बलिष्ठ, साहसी हैं जो कर्म-बीर व्रतवान सरल, उदार, सत्य, संतोषी, क्षमाशील, सज्ञान , कहे हुए को पलट न जाने, जो लौं तन मैं प्रान । मिलें सबों से उर से उर ला, तजें घृणित अभिमान , भाषा, भूमि, भूप, भगवत के, सच्चे भक्त जहान । रहे लक्ष पर-हित पै जिनका जिन्हें स्वहित इच्छा न कहे 'गुणाकर' जिन्हें हृदय से दें सजन सम्मान । नाम---(३४६२) हनुमंतसिंह रघुवंशी क्षत्रिय । जन्म-काल-सं० ११२४ । श्राप राजपूत ऐंग्लो-मोरियंटल-प्रेस के अध्यक्ष और हिंदी के एक सुयोग्य एवं प्रसिद्ध लेखक हैं । श्रापके पिताजी ठाकुर गिरिवरसिंह भी हिंदी के अच्छे कवि तथा चना थे । इनके चचेरे भाई ठाकुर उदयवीरसिंहजी अलीगढ़ के प्रसिद्ध बैरिस्टर हैं । आपका जन्म स्थान चांदोख, जिला बुलंदशहर है । कुछ काल तक यह भिनगा-नरेश श्रीराजा उदयप्रतापसिंहजी के यहाँ एक अच्छे पद पर थे । अापके बनाए प्रायः ३२ ग्रंथों में मेवाड़ का इतिहास, क्षत्रिय-कुल-तिमिर- प्रभाकर, महाभारत-सार तथा वीर वालक मुख्य हैं । महाराष्ट्र- केसरी शिवाजी, चरित्र-चंद्रिका, गृहिणीकर्तव्य-दीपिका, अभिमन्यु श्रादि का आपने संपादन भी किया है। आपके विपय स्तुत्य हैं तथा लेखन शैली श्लाघ्य है।