पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२१
२१
मिश्रबंधु

शेष कविगण उदाहरण- 1 राग गबड़ा २ "दुलिदुहि पिटा धरण न जाइ, रुखरे तेतलि कुंभीरे आँगन धरपण सुन भो बिधाती, कानेट चौरि निल अधराती । ध्रु० सुसुरा निद गेल बहुडी जागन, कानेट चोरे निलका गइ मारा । ध्रु० दिवसइ बहुड़ी काडइ डरे भास, राति भइले कामह जान । ध्रु० अइसन चर्या कुक्कु री-पाएँ गाइड, कोडि मजकै एकड़ि अहिं सनाइड।' ध्र० राग पटसंजरी २० निम्न-लिखित पद गायकवाड-ओरियंटल सीरीज़, बड़ौदा, की पुस्तक साधनमाला से लिया गया है। "हाँउ निवासी खमण भतारे, मोहोर विगोत्रा कहण न जाइ । ध्रु० फेटलिड गो माए अंत उड़ि चाहि, जा एथु बाहाम सो एथु नाहि । ध्रु० पहिल बिप्राण मोर वासन पूड़, नाड़ि विधारते सेव वापूड़ा । ध्रु० जाण जौबण मोर भइले सि पूरा, खूल नखलि बाप संघार । ध्रु० भाणथि कुकुरीपाए भव थिरा, जो एथु बझएँ सो एथु बीरा।" ध्रु०