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मिश्रबंधु

. । सं० १९५० पूर्व नूतन २०५ अधिक छंद रचे हैं, किंतु वे अभी अप्रकाशित रूप में हैं । आप एक सत्कवि हैं। उदाहरण- कलित कलेवर कलभ कमनीय सुख, सोहत सिंदूर . भरो ललित लिलार है। लसत मलिंद लट पटित सरोजन को लोनो लोल लंबित अनूठो उर-हार है । ध्यावत ही तोहि सिद्धिसदन शिवा के सुत, संपति समेत सुख लहत अपार है। बुद्धि के प्रकासन को विधन बिनासन को; रघुनाथ-दासन को 'दूजो कौन द्वार है । द्रुपद-सुता लखि दीन हरि अद्भुत वसन अमित्त चीर-हरन को कीन्ह जनु पूरण प्रायश्चित्त । कौन कहत है कान्ह को कारो श्याम शरीर; वह ऐसी पै है कहाँ प्यारी प्रभा गंभीर । कनक कुंज में कूजि अब कुटिल करीली पाँति 5 किमि काटत लै है सला सेइ सखी दिन राति । पंथं पथिक पावन पवन पाचक पावत पाथ जासु कृपा से तासु पै बलिहारी रघुनाथ । X नाम-(३५०७) राजधरलाल खरे कायस्थ, तालबेहट (झाँसो)। कविता-काल-सं० १९५०। जन्म-काल-सं० १९२३ । ग्रंथ-(१) दानलीला, (२) सुधाराज-सरोवर, (३) राज- सतसई, (४) नारी-प्रशंसा, (१) विनय-चालीसी, (६) हनुमान-