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मिश्रबंधु

पूर्व नूतन २११

आतृभाव-संगीत, (७) संकीर्तन-संगीत, (८) कविता-कुसुम, (१) चातक-चालीसी। विवरण- -आप मुंशी शिवशंकरसहाय के पुत्र हैं । आपने हिंदी- मंदिर-नामक एक पुस्तकालय छपरे में सं० १९७६ में खोला, जिसके श्राप संयुक्त मंत्री हैं । यह महाशय सुकवि हैं। उदाहरण- प्रेस-धन ! प्यारी सभी को है वटा, पर सभी का प्रेम तुझले है घटा; है सहज सुस्नेह तेरा इष्ट में, जान की बाजी लगाकर मैं डटा । निसि वासर नाहक चाहक है फिरे बागन फूल की चायन से :- अरे वावरे एतो मजा हाँ कहाँ जितो कूट भरो ह्याँ सुभायन में । कुछ हू सुनि ले तू दमोदर की रस सेल रह्यो न रसायन में मन भृग फिरे मँडरात कहाँ बस रे बस गौरि के पायन में । नाम-(२५१५) बलदेवप्रसाद मिश्र । यह महाशय मुरादाबाद शहर के रहनेवाले पंडित ज्वालाप्रसाद मिश्र के छोटे भाई थे । इनकी अकाल मृत्यु केवल ३६ वर्ष की अवस्था में, सं० १९६२ में, ७ अगस्त को हो गई। यह महाशय हिंदी और संस्कृत के अच्छे लेखक थे, और तंत्रप्रभाकर-नामक पत्र भी इन्होंने कुछ दिन निकाला। मिश्रजी ने बहुत-से ग्रंथ स्वतंत्र और कुछ अनुवाद करके रचे तथा कतिपय नाटक-ग्रंथ भी बनाए, जिनमें नंद-विदा-न -नाटक हमारे पास है। यह महाशय कविता भी प्रशस्त करते थे। इनके ग्रंथों में पानीपत, देवी-उपन्यास, कुंदनंदिनी, दंड- संग्रह, राजस्थान, नेपाल का इतिहास, ताँतिया भील, पृथ्वीराज चौहान, अध्यात्मरामायण भाषा, प्रफुल्ल और कल्किपुराण भाषा प्रधान हैं । हमारे मिश्रजी ही वर्तमान समय के लेखकों में पहलेपहल ऐसे थे, जिनका निर्वाह केवल अपनी पुस्तकों की विक्री से होता था। यह इनके लिये बड़े गौरव की वात थी। इनके लेख बड़े गंभीर एवं