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मिश्रबंधु

नग २१२ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९५५ भाषा ललित होती थी, पर इनके छंद वैसे अपूर्व न थे। इन्होंने महावीर-चरित्र और उत्तर-रामचरित्र-नामक भवभूति के नाटक नथों के उत्था भी बनाए, जो अप्रकाशित अवस्था में महाराज छत्तर- पुर के पुस्तकालय में हैं। इनकी अकाल मृत्यु से हिंदी की भारी क्षति हुई । यदि आप दीर्घजीवी होते, तो इनके परमोत्कृष्ट तथा गंभीर गध-लेखक होने की आशा थी। उदाहरण- लखो यह बान नीको। जनस्थान पश्चिम की भूमी चित्र बनो सुख जीको। दानवगण अरु ऋपि मतंग को थान यही सुगतीको । श्रमणा धरम-चारिणी शवरी लखौ प्रेम यह तीको । ये दोनो नाटक प्रायः डेढ़-डेढ़ सौ पृष्ठों के हैं। नाम-( ३५१६) मथुराप्रसादजी मिश्र । श्रापका जन्म-स्थान ज़िला सुलतानपुर अमेठी-राज्य के अंतर्गत पच्छिम गाँव है । यह संस्कृत के अच्छे विद्वान थे और भाषा का काव्य मनोहर करते थे। बँगला का भी अभ्यास आपने किया था। इन्होंने बाबू कालीप्रसन्नसिंह सव-जज लखनऊ की आज्ञानुसार और उन्हीं की सहायता से कृत्तिवास-कृत बँगला-रामायण के लंकाकांड का छंदोबद्ध अनुवाद करके सं० १६११ में प्रकाशित किया। उसके पीछे उत्तरकांड का भी अनुवाद प्रारंभ किया गया, परंतु वह प्रकाशित नहीं हो पाया, और वीच ही में पंडितजी एवं सब-जज साहब का स्वर्गवास हो गया । यह लंकाकांड संपूर्ण तुलसीदास की रामायण से आकार में कुछ कम न होगा। इसमें रायल अठपेजी के ५१० पृष्ठों में कथा, १० पृष्ठों में भूमिका, ५ में विषय-सूची तथा ७८ पृष्ठों में टिप्पणी आदि हैं । कुल ६०३ पृष्ठों में यह कांड समाप्त हुआ। इसमें कथा बहुत विस्तार से लिखी