पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/२२

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मिश्रबंधु-विनोद VV "हले सहि विन सिअ कमल पवीहिड वज, अलललल हो महासुहेण प्रारोहिउ नृत्ये । रवि किरणेण पफुल्लिन कमलु महासुहेण, (अल. ) आरोहिउ नृत्य।" नाम-(8) गुंडरीपाद (सिद्ध ५४)। समय-६० के लगभग। विवरण-~-यह कर्मकार कुल में पैदा हुए थे। सिद्धः लीलापा (२) के शिष्य थे । इनके शिष्य धर्मपाद थे, जिनके शिष्य हालिपाद (१०) कहे जाते हैं। तंजूर में इनका कोई ग्रंथ नहीं मिला है। चर्याणीति में इनकी निम्नलिखित गीति मिलती है- तिअड्डा चापि जोइनि दे अंकवाली, कमल कुलिश बाँट करहुँ विप्राली । ध्रु० जोइनि तँइ बिनु खनहिं न जीवमि, तो मुह चुंबी कमल-रस पीवमि । ध्रु० खेंपहु जोइन लेप न जाय, मणि कुले कहिया अोडि आणे सगा । ध्रु० सासु घरे बालि कोंचा ताल, चाँद-सुज वेणी पखा फाल । ध्रु० भणह गुडरी ब्रह्म कुंदुरे बीरा, नर अनारी मझे उभिल चीरा । ध्रु० नाम-~(2) विरूपा (सिद्ध ३)। समय-८६० के लगभग। अंथ-(१) अमृत-सिद्धि, ( २ ) दोहा-कोष, (३) दोहा- कोच-गीति (४) मार्गफलान्विताव-वादक, (५) विरूपगीतिका, (६) विरूपवनगीतिका, (७) विरूपपद चतुरशीति, (८) सुनिष्प्रपंचतत्त्वोपदेश कर्मचंडालिका,