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मिश्रबंधु

सं० १९१२ पूर्व नूतन यह हमारे प्राचीन मित्र थे। श्राप हिंदी के एक परम प्रसिद्ध गद्य-लेखक और कई स्वतंत्र गध एवं अनुवाद ग्रंथों के रचयिता ये। श्राप मध्य प्रदेश की छुईखदान-रियासत में ऊँचे कर्मचारी थे। आपने मराठी के चिपलूणकर-नामक प्रसिद्ध लेखक के संस्कृत कवि- पंच एवं निबंधमालादर्श का भापा-अनुवाद किया तथा रस- वाटिका-नामक रस-संबंधी एक अच्छा रीति-ग्रंथ लिखा । भवभूति के श्राधार पर इन्होंने मालती-माधव-नामक एक ग्रंथ उपन्यास के ढंग पर बनाया । नर्मदा पर अापने एक कविता-नथ भी रचा । अाप भापा के बड़े ऊँचे लेखकों में गिने जाते हैं। श्रापके ग्रंथों में निबंधमाला, प्रणयी माधव, राष्ट्र-सापा, संस्कृत-कवि-पंच, मेघदूत, डॉक्टर जानसन की जीवनी और नर्मदा-विहार मुख्य हैं। कुछ काल श्राप कोरिया-रियासत के दीवान थे। गो-वंशोन्नति के श्राप बढ़े ही प्रेमी रहे और इस विषय पर बहुत-सी गद्य तथा पश्च-कविता श्रापने की। श्रापका स्वर्गवास सं० १६८ में हुआ। अापके नंथ गंभीरता पूर्ण तथा रोचकता से अलंकृत हैं। --(३५२०) जगन्मोहन वर्मा। इनका जन्म सं० १९२७ में वस्ती-जिले के देवीपार नामक ग्राम में हुया । श्राप ठाकुर व्रजराजसिंह के पुत्र थे । आपने १६ वर्ष की अवस्था में उर्दू तथा कारसी की शिक्षा घर पर ही समास की। इसके पीछे श्राप अँगरेजी-हिंदी तथा संस्कृत का अध्ययन करने लगे। सं० १९६६ में श्राप हिंदी-शब्द-सागर के संपादन-कार्य में सम्मिलित हुए, तथा सं० १६७५ तक यह कोप-संपादन-कार्य करते रहे । श्रापने अनेकानेक लेख पत्र-पत्रिकाओं में लिखे। इनका स्वर्ग- वास हुए कई वर्प हो गए हैं। अापके जंगबहादुर, बुद्धदेव, शुयेन- श्रांग, लोक-वृत्ति, सुंगयुन-नामक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं तथा ह्य पुरसांग विवेकानंद का ज्ञान-योग, राजयोग, भक्ति-योग, काव्य- नाम- .