पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२३
२२३
मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९५२ कलानिधि, पित्रावली, शब्द-शास्त्र और पुरुषार्थ-नासक ग्रंथ अभी अप्रकाशित हैं। श्रापकी हिंदी-सेवा उपयोगी विषयों पर होने से बहुत महत्ता-युक्त । भापा तथा भाव भी उच्च कोटि के हैं। इनकी रचनाएँ स्वदेशानुराग-युक्त होने से और भी जगमगा उठी हैं । नाम-( ३५२१) दर्शनदुबे, ग्राम बंदनवार, परगना संताल, (बिहार-प्रांत)। जन्म-काल-सं० १९३२ । कविता-काल-सं० १९५२ । मृत्यु-काल-सं० १९६६ । ग्रंथ-(१) दर्शन-विनोद (सं० १६५२), (२) मेघनाद- वध-नाटक (सं० १६५३ ), (३)जै मा दुर्गा, (४) श्रीमच्छं- कराचार्य-विरचित मणिरत्नमाला का हिंदी-गद्य-पद्यानुवाद (सं० १६५३), (५) प्रवोध-चंद्रिका (सं० १९५३), (६) प्रेम- प्रवाह, (७) शैवानंद, (८) युगलविहार, (8) संगीतसार, (१०) उपासना-विषय पर व्याख्यान (सं० १९५६), (११) दुर्गा अागमनी-स्तोत्र, (१२) निज भाषा की कविता, (१३) हरे सेव केवलम् (हिंदी-अनुवाद), (१४) पावस-पचासा, (१५) शृंगार-तिलक, (१६) ऋतुमाला, (१७) शृंगार-संहार (संस्कृत-काव्य-ग्रंथ), (१८) चैतीसंग्रह । विवरण-आप भारद्वाज गोत्रीय पं० श्रवण दुबे के पुत्र थे । हिंदी तथा संस्कृत के अतिरिक्त आपने अँगरेज़ी की भी शिक्षा पाई थी। कविता करने की प्रवृत्ति प्राप में पहले ही से थी। इनका तथा इनके पूर्वजों का जीविका-साधन कृषि-कर्म था । ऊपर दिए हुए अठारह ग्रंथों के अतिरिक्त इन्होंने 'समस्या-पूर्ति-प्रकाश' तथा 'द्रौपदी-चीर- हरण'-नामक दो ग्रंथ और बनाए, किंतु वे अब उपलब्ध नहीं हैं। शृंगार-तिलक, ऋतुमाला तथा भंगार-संहार इनकी रचनाभों के