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मिश्रबंधु

सं० १९५२ पूर्व नूतन २१२. सर्वोत्तम नमूने हैं, ऐसा कहा जाता है। आपकी सव रचनाएँ अभी तक अमुद्रित रूप में पड़ी हुई हैं। [पं० बालाप्रसाद दुबे, शिक्षक, गोडा-इंग्लिश स्कूल, (संताल परगना)द्वारा ज्ञात] आप धार्मिक तथा दार्शनिक विपयों पर बहुत श्रम कर चुके हैं तथा सुकवि भी हैं । उदाहरण- कैचों कल कंज मकरंद कुच पान हेतु , चपकि मलिंद रस सत्त बैठो फरकी । कैधों कुलुमायुध के कंचन शिलीमुख पै लसत कुधात मुख सोहै हिमकरकी । उपसा बिलोकि कुच कमल सरीखे कहैं, हिम को सँयोग पाय जैहे किधौं सरकी । 'दरसन' याही डर अंचल दुरात कुच; कलश ढकी है मनो देव पंचशरकी । X X नाम-(३५२२ ) बुंदेला वाला। यह विदुपी कवियित्री लाला भगवानदीन (संपादक, लक्ष्मी पत्रिका) की धर्मपत्नी थीं। शोक है कि इनका आपाढ़, संवत् १६६७ में वैकुंठवास हो गया । इनकी रचित कविता का संग्रह करके चतुर्भुजसहाय वर्मा, छतरपुरवासी ने वालाविचार नाम से प्रकाशित किया। इसमें १२ विषयों पर कविता है, अर्थात् माता-सहिमा, पुत्री के प्रति साता का उपदेश, गृहिणी-सुख, संसार-सार, अबला-उपालभ, चाहिए ऐसे यालक, पुत्र, भारत का नक्शा, सावधान, बाल-दिनचर्या, राधिका-कृत कृष्ण-चितवन और कृपा-कौमुदी। ये सब ग्रंथ ४० पृष्टों में समास हुए हैं। इसके प्रथम लाला भगवानदीनजी-रचित विरह-विलाप-नामक काव्य छपा है । वालाजी का काव्य बहुत ही देश-प्रेम-युक्त, सरस, मनोहर तथा उपदेश-पूर्ण है। इसी भाँति के विषयों पर कविता x