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मिश्रबंधु

३ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९५२ रचना अाजकल प्रत्येक शिक्षित का काम है। वालाविचार बहुत प्रशंसनीय ग्रंथ है। उदाहरणार्थ हम भारत के नशे से कुछ कविता यहाँ देते हैं। नशे का वर्णन माता अपने पुत्र से कह रही है। साता- हे प्यारे कदापि तू इसको तुच्छ श्याम रेखा मत मान ; यह है शैल हिमाचल इसको भारत-भूमि-पिता पहचान । नेह-सहित ज्यों पितु पुत्री का सादर पालन करता है यह हिमगिरि त्यों ही भारत-हित पितृभाव हिय धरता है। गंगा-यमुना युगुल रूप से प्रेम-धार का देकर दान ; भारत भूमि-रूप दुहिता का नेह-सहित करता सनमान । पुत्र- यह जो बाम ओर नक्शे के रेखामय अतिशय अभिराम; शोभामय सुदर प्रदेश है मुझे बता दे उसका नाम । माता- बेटा यह पंजाब-देश है पुण्य भूमि सुख-शांति निवास सर्व-प्रथम इस थल पर पाकर किया अ.रयों ने निजवास । कहीं गान-ध्वनि कहीं वेद-ध्वनि कहीं महामंत्रों का नाद; यज्ञ-धूम से रहा सुबासित यह पंजाब सहित अहलाद । इसी देश में बस के 'पोरस' ने रक्खा है भारत-मान ; जब सन्नाट सिकंदर आकर किया चाहता था अपमान । इससे नीचे देख पुत्र वह देश अष्टि जो पाता है सकल बालुकामय प्रदेश यह राजस्थान कहाता है। इसके प्रति गिरिवर पर बेटा अरु प्रत्येक नदी के तीर; देश-मान हित करते श्राए आत्मविसर्जन क्षत्रिय वीर । कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ अमर चिह्नों के रूप 3 बीर कहानी रजपूतों की लिखी न होवे अमर अनुप ।