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मिश्रबंधु

सं० १९५२ पूर्व नूतन .२२१ 3 छन्नी-कुल अवतंस वीरवर है 'प्रताप'जी का यह देश रानी पद्मावती सती ने यहीं किया है नाम विशेष । क्षत्रीवंश-जात को चहिए करना इसको नित्य प्रणाम 3; इससे क्षत्रीवर्ग क जग में सदा रहेगा रोशन नाम । नाम-(३५२३ ) राजाराम शास्त्री। इनका जन्म सं० १९२७ में हुआ। श्राप दयानंद-कॉलेज, लाहौर में अध्यापक रहे। वाल्मीकीय रामायण, वेदांतदर्शन, योगदर्शन, मनुष्य-समाज, शंकराचार्य (जीवन-चरित्र), बृहदारण्यकोपनिषत, दशोपनिपत्-भाष्य-नामक ग्रंथ श्रापने बनाए । आप भाषा के मर्मज्ञ और उपयुक्त ग्रंथों के अतिरिक्त भी अन्य कई पुस्तकों के रचयिता थे। श्राप बड़े ही परोपकारी और धर्मनिष्ठ सनन कहे जाते हैं । आपका साहित्यिक श्रम बहुत उपयोगी तथा श्लाघ्य है। नाम-(३५२४ ) श्यामसुंदर (श्याम)। यह असनी, जिला फतेहपुर-निवासी पंडित मन्नालाल मिश्र के पुग्न और कवि सेवक के शिष्य थे। इन्होंने सं० १९५२ में ठाकुर महेश्वर- बलशसिंह तअल्लुक़दार रामपुर, मथुरा जिला सीतापुर के आझा- नुसार महेश्वर-सुधाकर-नामक ग्रंथ बनाया । इसमें नायिका-भेद का वर्णन है, और अंत में समस्या-पूर्ति के छंद हैं । इस ग्रंथ की भाषा व्रज-भापा है । कवि ने प्रायः सब उदाहरणों का तिलक भी कर दिया है। यह महाशय साधारण श्रेणी में गिने जाते हैं । उदा. हरणार्थ इनका एक छंद लिखा जाता है- शोभित मोरपखा श्रुति कुंडल माल बिलाल हिए बिलसी है; स्याम-सरोज बिनिंदक नैन सुनानन की .समता न ससी है। बैन सुधा मुसकानि अमी सम देखु अरी उर प्रानि गसी. है; मूरति माधुरी मोहन की सुनतै सजनी मन माँहि बसी है।।