पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/२२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२७
२२७
मिश्रबंधु

२२२ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९५३ r 3 समय-संवत् १९५३ नाम-( ३५२५) जयदेवजी भाट, अलवर । जन्म-काल-सं० १९२८ । रचना-काल-सं० १९५३ । रचना-स्फुट काव्य । विवरण- -~श्राप राव राजा अलबर के आश्रित थे। श्रापकी कविता बड़ी ही सरस होती है। उदाहरण- फेली सुगंध भरी लतिका सोई गोरखधंध प्रबंध बनायो । त्यों जयदेव विभूति की भाँति बड़े अनुराग पराग लगायो । नीरज नील निचोल अमोल पिकी धुनि बोल अतोल सुनायो; प्रान की भीख वियोगिन पै रितुराज फकीर है माँगन अायो। १ । सोरन को कारकै चहुँ श्रोरन मोद भरे बन मोर नचेंगे बारिद बीज छटा जुत देखि वियोगिन के तन ताप तचेंगे। त्यों जयदेव उमंगन सों नर-नारि अपार विहार रचेंगे पावस की ऋतु मैं सजनी बिन पीतम के किमि प्रान बचेंगे।२। नाम-(३५२६) मथुराप्रसाद पांडेय, मथुरा । मृत्यु-काल-सं० १६७८ । ग्रंथ-स्फुट कविताएँ। विवरण--आप एक अच्छे प्राशुकवि थे 1 श्रापको कुछ प्राशु रचनाओं के उदाहरण नीचे दिए गए हैं। ने प्रायः 'विचित्र' उपनाम से अंकित रहा करती थीं। कहा जाता है कि इन्होंने कई ग्रंथ लिखे हैं, किंतु वे अभी अमुद्रित हैं। यह महाशय भगवान् श्रीकृष्ण एवं मथुरापुरी के अनन्य भक्त थे, और इसी पुरी में तीर्थ संन्यास ग्रहण करके निवास करते थे। [पं० जगदीशपति त्रिपाठी, काशी द्वारा ज्ञात] .