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मिश्रबंधु

२२८ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९५४ जापान का इतिहास और हिंदी-नवरन गद्य में हैं। हा काशीप्रकाश और भारत-विनय खड़ी बोली के पद्य में और नाटक छोड़ शेष व्रज- भाषा-पद्य में हैं । भूषण-ग्रंथावली-नामक ग्रंथ में भूपण की कविता पर टिप्पणी एवं समालोचना है। हिंदी-नवरत्न तथा यह ग्रंथ मिश्र- बंधु-विनोद पं० गणेशविहारी तथा पं० शुकदेवविहारी के साथ बनाए गए । सं० १९८६ में आप हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के सभापति नियुत हुए। इन तीनो भाइयों के विचार नूतन हैं । काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा के द्वारा यू० पी० सरकार की सहा- यता से हिंदी-लिखित ग्रंथों की खोज का काम प्रायः ४० वर्षों से हो रहा है। उसकी बहुतेरी वार्षिक तथा त्रैवार्षिक रिपोर्ट निकला करती हैं, जिन्हें सरकार अपने व्यय से छापती है। इस कार्य के निरीक्षण का कास श्यामविहारीजी ने ६ या १० वर्ष किया, तथा शुकदेव विहारीजी ने साल-डेढ़ साल । ज्येष्ठ भ्राता के इस काम की दो त्रैवार्षिक रिपोर्ट प्रायः पाँच-पांच सौ पृष्ठों की हिंदी तथा अँगरेज़ी में निकली थीं, जो इन दोनो भाइयों ने लिखी थीं और जिन्हें सरकार ने छपाया। इस लंबे खोज के काम से मिश्रवंधु-विनोद को बहुत कुछ सहायता पहुँची है । विनोद में खोज के अतिरिक्त और भी बहुत-सा मसाला है। हम लोगों के मिश्रबंधु-विनोद तथा हिंदी-नवरत्न कई उत्तर- भारतीय विश्वविद्यालयों में पाव्य-ग्रंथ कई सालों से चले आते हैं। ये दोनो प्रधानतया खोज और समालोचना के ग्रंथ हैं। भारत के इतिहासवाले प्रथम खंड में प्रायः ६००० संवत् पूर्व से ६०० संवत् पूर्व तक का इतिहास है। दूसरे खंड में बौद्धकाल से प्रारंभ हो- कर सुसलमानों के आने तक का वर्णन है। इन दोनो भागों में हूँद-खोज का बहुत काम है । आत्मशिक्षण एक उपदेश-प्रद निबंध है, जिसमें चरित-संशोधन की शिक्षा दी गई है। भारत-विनय खड़ी बोली में १४७ पृष्ठों का देश-भक्ति-पूर्ण काव्य-ग्रंथ है । हम लोगों