सं० १९५४ पूर्व नूतन २२३ के चारो नाटक-ग्रंथ स्टेज पर खेलने योग्य हैं । शिवाजी अभी प्रकाशित नहीं हुआ है, किंतु जल्द छपेगा। पूर्व भारत काशी छतरपूर और वृंदावन में खेला जा चुका है, तथा पंजाव में पाठ्य-पुस्तक है । इसके चार संस्करण निकल चुके हैं। इसका बँगला में अनुवाद भी हुआ है । वीरमणि उपन्यास-ग्रंथ है, जिसमें अलाउद्दीन के समय मेवाड़-युद्ध का भी वर्णन आया है । बूंदी-वारीश ब्रजभाषा का काव्य-ग्रंथ है । सुमनोंजलि तथा भारत के इतिहास में हिंदू-धर्म पर भी भारी विवेचन है । मदन-दहन और रघुसंभव में कालि- दास के साढ़े तीन अध्यायों का स्वछंद अनुवाद है। पच-पुष्पांजलि में २४० पृष्ठों में हमारे चुने हुए पद्य-साहित्य का सन्निवेश है । शिवाजी स्वदेशानुराग-युक्त नाटक है, और उत्तरभारत वैसा ही है, जैसा कि पूर्व भारत । नेत्रोन्मीलन में कचहरियों पर प्रकाश पड़ा है। रूस और जापान के इतिहास छोटे रूप में उन देशों का पूरा वर्णन करते हैं। उदाहरण समरथ सुतन पै राखत पिता है प्रेम, मातु पै कुपूतन बिसेख अपनावती; देखि प्रौढ़ सुत को सुजस मन-मोद भरे, कादर को तबहू छिनौ न बिसरावती । मातु भारती को हौं तौ कादर कपूत मति, याते अंब चरन सरन तकि धावती अरविंद नंद सों न सकति अमंद पाई, मातु नखचंद की छटा ही चित भावती। x समय-संवत् १९५५ नाम-(३५३४) नारायण स्वामी, माड़वारी गली, लखनऊ x