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मिश्रबंधु

मिनबंधु-विनोद सं० १९५५ 3

उदाहरण- कंचन के भूखन सँवारे पुखराज चारे , धारी जरतारी पीत सारी सुखकारी है . सूनी दुपहर में निदाघ की बिहारी पास , पूरन सिधारी वृषभानु की कुमारी है। ब्रजचंद्र ध्यान मैं मगन रसखान प्यारी , ताती पौन लेखत बसंत की वयारी है। आतप अखंड इंडकर की प्रचंड सोऊ , मानत सुचंद की असंद उजियारी है। १ । कुंजन के सघन तमालन के पुंजन में करत प्रवेश न दिनेश उजियारो है प्यारी सुकुमारी श्याम सारी सजे ठाढ़ी तहाँ, नीलमणि-मालन को जाल छबि चारो है। छिटके बदन चंद कुंतल अमंद श्याम , स्यामा रंग पागी मान रंभा को विदारो है

पूरल सुअंगन पै सौरभ प्रसंग पाय , झूमै स्याम भौरन को मुंड मतधारो है । २ । नाम-( ३५३८) शुकदेवविहारी मिश्र, रायबहादुर। इनका जन्म सं० १९३५ में इटौंजा में हुआ । इनके पिता पं० वालदत्त मिश्र एक प्रसिद्ध जमींदार और कवि थे। इन्होंने बाल्या- वस्था में उर्दू पढ़कर सं० १९४६ में लखनऊ जाकर अँगरेज़ी पढ़ना श्रारंभ किया। सं० १९९७ में इन्होंने बी० ए० होकर सं० १९५८ में हाईकोर्ट वकालत की परीक्षा पास की। कुछ साल वकालत करके सं० १६६५ में इन्होंने मुंसफी कर ली। इसके बाद सब-जज तथा रियासत छतरपूर में दीवान हुए । सं० १९८८ में स्नायु-रोग से पीड़ित होकर दवा करने को श्राप योरप गए, जहाँ छ महीने रहकर