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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद अलक्ष-लख-चित्ता महासुहे, विलसइ दारिक० । ध्रु० कितो मंते कितो तंते कितो रे झाण बखाने, अपइ ठान महासुह लीणे दुलख परम निवाणे । ध्रु० दुःखें सुखें एक करिश्रा भुज्जइ इंदीजानी, स्वपरापर न चेवइ दारिक सालानुत्तर मानी । श्रु. रामा राम्रा रायारे अवर रामोहरा बाधा, लुइ-पान-पए दारिक द्वादशभुअणे लधा ।" ध्रु० नाम--(4) डोभिपा (सिद्ध ४)। समथ-0 के लगभग। ग्रंथ--(3) अक्षरहिकोपदेश, ( २ ) डोंबि-गीतिका, (३) नादीविदुद्वारेयोगचर्या । विवरण---यह महाशय मगध देश-निवासी क्षत्री थे। इनके गुरु वीणापा और विरूपा दोनो थे। डोभिपाद के नाम से तंजूर में २१ ग्रंथ मिलते हैं. पर इसी नाम के एक और सिद्ध हो गए हैं, अतः ठीक नहीं कहा जा सकता कि कौन ग्रंथ किसका है। उदाहरण- राग देशाख १० नगर बारिहिरें डोंबि तोहोरि छुड़िया, छइ छोइ थाइ सो बाह्य नाडिया । ध्रु० श्रालो डोवि तोए सम करिबे म सांग, निधिण कारह कापालि जोइ लाग । ६० एक सो पद्मा चौलट्ठी पाखुड़ी, तहि चड़ि नाच डोंवी बापुड़ी । ध्रु० हाली डोंबी तो पुछमि सद्भावे, अइससि जासि डोंवि काहरि नार्वे । ६०