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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९५६ तथा कुछ भाषा के भी गद्य-ग्रंथ गंभीर विषयों पर बनाए। और हाल ही में न्याय-दर्शन तथा वैशेषिक दर्शन-नामक ग्रंथ लिखे हैं। इलाहाबाद-विश्वविद्यालय में डॉक्टर बेनीप्रसाद वैश्य, डॉक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी, धीरेंद्र वर्मा आदि भी हिंदी के सुलेखक हैं। नाम-(३५४२ ) रामसिंहजी के० सी० आई० ई०, राज्य सीतामऊ । राठौर-कुल-भूपण सीतामऊ-नरेश श्रीराजा सर रामप्रतापसिंहजी का जन्म पौष बदी ५,. गुरुवार सं० १९३६ को धार राज्यांतर्गत काछी-बड़ौदा-नामक ग्राम में हुआ । श्रीमान् ने १२ वर्ष की अवस्था से इंदौर, डेली-कॉलेज में शिक्षा पाई । वहाँ का शिक्षण आपने सं० १९५५ में संपूर्ण किया, और तत्पश्चात् माल-संबंधी काम श्रापने भरतपुर में सीखा। वहाँ के तत्कालीन हाकिम बंदोबस्त सरमाइ- केल प्रोडायर ने आपके काम के विषय में बहुत प्रशंसा की । भारत- सरकार ने निकटसंबंधी जानकर श्रीमान् शार्दूलसिंहजी के वैकुंठवास होने पर, आपको सीतामऊ-राज्य का अधिकारी माना, और आपका राज्यारोहण सं० १६५६ में बड़े समारोह से हुा । राजशासन-कला की दृष्टि से इनका जीवन प्रशंसनीय है ही, किंतु हिंदी-साहित्यिक सेवा की दृष्टि से भी इनका चरित्र मौलिक तथा अभिनंदनीय है। आप कवि हैं तथा विद्या-व्यसन आपका मुख्य व्यवसाय है। प्रज- भाषा तथा संस्कृत दोनो में आप कविता करते हैं । इनकी हिंदी कविता विशेषतया दो प्रकार के छंदों में विभक्त है--कवित्त और सवैया । इनकी प्रथम कृति 'राम-विलास' नामक काव्यात्मक ग्रंथ है, और वह सं० १९६३ में प्रकाशित हो चुका है। यह ग्रंथ भक्ति-पूर्ण है । 'राम-विलाल' के पश्चात् यथावकाश प्रापने 'मोहन- विनोद' नामक दूसरा ग्रंथ रचा । यह नायिका-भेद पर है, और