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मिश्रबंधु

सं० १९५६ पूर्व नूतन २३७ 1 थापकी शृंगारिक कविता की मौलिकता इससे प्रकट होती है। ग्रंथ अभी अप्रकाशित रूप में है। आपको काव्यानुराग के अतिरिक्ष विज्ञान से भी रुचि है। आपका 'वायु विज्ञान'-नामक तीसरा ग्रंथ भी बहुधा सं० १९६३ ही में प्रकाशित हुआ। नारिन के, - साज सजे, उदाहरण-- ( राम-विलास से) त्रय बांधव संग जिते तितहीं, शिशु रूपहि धारि फिरयो करिए । रजधानि सबै नर नित लोचन लाभ सरधौ करिए। चित-चोरत तोतरि बातन तें, पितु - मातु प्रमोद भरयौ करिए । रघुनाथ सदा यह मम नेत्र पवित्र कश्यौ करिए। (मोहन-विनोद से) मीन कंज खंजन के भए मद भंग सबै, 'मोहन' निहारे नेक नैनन लुनाई को पूरन सरद चंद छीन छवि होत बेगि, पेखि जाके श्रानन की सोभा सुंघराई को । चाप चार विवाफल देखि के लजात हिय, भौंह की बँकाई अरु अधर ललाई को रसिक सुजान कान्ह री क्यों न ऐसी लखि, राधा गुन-खान की स्वरूप अधिकाई को। नाम--(३५४३ ) ब्रजनंदनसहाय । आपका जन्म सं० १६३१ में हुआ श्राप जिला पारा में 3