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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण तांति विकण डोंबी अवर ना चंगता, तोहोर अंतरे छाडिनड एट्टा । ध्रु० तुलो डोंबी हाउँ कपाली, तोहोर अंतरे मोए घलिलि होडरि माली । ध्रु० सरबर भांजीय डोंबी खान मोलाण, भारमि डोंबि लेमि पराण ।" ध्रु० धनसी राग १४ "गंगा जउना माँझरे बहइ नाई, ‘तहिं बुडिली मातंगि पोइया लीले पार करेइ । ध्रु० वाहतु डोंबी वाहलो डोंबी वाटत अइल उछारा, सद्गुरु पाअ-पए जाइन पुणु जिणउरा । ध्रु० पाँच केड.अल पड़ते मांगे पिटत काछी बांधी, गण दुखोलें सिंचहु पाणीन पइसइ सांधि । ६० चंद सूज दुइ चका सिठी संहार पुलिंदा, वाम-दहिण दुइ माग न खेइ वाहतु छंदा । ध्रु० कवडी न लेइ बोडी न लेइ सुच्छडे पार करेइ, जो रथे चडिला वाहवाण जाई कुलें कुल बुड़इ भिक्षावृत्ति नामक पुस्तक में, जो तंजूर में है, इनका यह दोहा मिलता है। निम्न-लिखित पाठ ल्हासा के मुवबिहार की हस्त-लिखित प्रति. के अनुसार है- "भुज्जइ मअण सहाव र कमइ सो सइअल, मोश्रो धर्म करंडिया मारउ काम सहाउ%; अच्छउ अक्ख पुनइ, सो संसार-विमुक्क ब्रह्म महेसर पारायणा, सक्खं असुद्ध सहाव ।" नाम-(१) भूसुक या शांतिदेव (सिद्ध ४१)।