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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९५८ ७ नारि विवश निशि बासर रहई । माता-पितहि बचन कटु कहई । नाम-( ३५५६ अ) क्षमापति चंदिकाप्रसादसिंह 'प्रवीण', काशीपुर, जिला उन्नाव। जन्म-काल-सं० ११३८ । रचना-काल-सं० १६५% (अनुमानतः) । मृत्यु-काल-सं० १९७८ । ग्रंथ-(१) काव्य-कांता (रीति-ग्रंथ, १५०० छंद), (२ रस-भास्कर, (३) अलंकार-चंद्रोदय, (४) सीता-स्वयंवर-सरोज ( नाटक), (५) विनोद - कौमुदी, (६) गीतामृत - शतक, .) रामचंद्राभ्युदय, (८) यशवंत-पीयूष, (६) वियोग-वल्ली. (१०)शृंगार-सरोज । विवरण- [-आप वैश्य क्षत्रिय श्रीयुत बच्चूसिंह के पुत्र थे। [श्रीकुंवर बाबूसिंह क्षत्रिय, पिपरसंड ( ज़िला लखनऊ ) के द्वारा ज्ञात ] । उन्हीं के पास इन कवि के कतिपय ग्रंथ हैं । ऊपर दिए हुए ग्रंथ अभी अप्रकाशित रूप में हैं । आप एक सुकवि हैं । उदाहरण- सहत न कोऊ तेरे बल की प्रवल आँच, मेरे जान साँचहू पिए है रन हाला 'चंद्रिकाप्रवीण' सर चंद्र की चपेट चोट; खंडित कपाल करै कंदुक उछाला तें। बाहैं अभिमन्यु की सराहै गुरु द्रोण अस, दोनो दल बीच एक बीर है निराला तें। कटि, कर, तुंडन, वितुंडन की झुडन को; दीनी है चमुंडन को मुंडन की माला रौं । 1