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मिश्रबंधु

मिश्रपंधु-विनोद सं. १९५६ २५० ग्रंथ-(१) कुल-कलंकिनी, (२) भयानक भूल, (३) पर- लोक की बातें, (४) आध्यात्मिक रहस्यों में सामाजिक जीवन, (५) विवेकानंद की जीवनी, (६) रोम का इतिहास, (७) राजनीतिक विकास, (८) पाटलिपुत्र का ऐतिहासिक महत्त्व, () अनोखा रंडीबाज़ (पद्य), (१०) अभिमन्यु का आत्मदान ( खंड काव्य) आदि ग्रंथ तथा लेख । विवरण-श्राप श्रीवास्तव कायस्थ (दूसरे) श्रीयुत महावीर- ग्रसादजी के पुत्र हैं। आपकी माताजी सुशिक्षिता थीं । इसी से वाल्यावस्था से ही आपको हिंदी-साहित्य से अनुराग हो गया। यह पहले हाजीपुर में रहते थे, और पश्चात् पटने में निवास करने लगे। आपने हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत तथा अँगरेज़ी में भी ज्ञान प्राप्त किया है। बिहार-प्रांत में हिंदी-साहित्य का प्रचार करने का श्रेय आपको बहुत कुछ है । कुछ काल तक यह 'बिहार-बंधु'-नामक साप्ताहिक पत्र के संपादक थे। कहा जाता है कि मुक्तावली काव्य- अंथ के कर्ता विद्यारन पं० विजयानंद को यह अपना गुरु मानते थे । उदाहरण- (निर्बल-सेवा से) गंगा की धारा वैठ घाट पर निरखो, जो गई, सदा के लिये न आई फिर वो। विशाम-हीन वह कल-कल करती धारा , दौड़ी है जाती तनिक न चलता चारा । पीछे देती थपकियों करोड़ों आती, हैं लगातार बस यही समा दिखलाती। जीवन की धारा उसी तरह है भाई , भूमंडल में अज्ञात स्रोत से आई। टकराकर बुद-बुद बने जीव भी बनते