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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९६० कारण जेल जा चुके हैं। व्याख्यान भी आप प्रवाह धारा से देते हैं। आपके प्रथ देश-भक्ति-पूर्ण तथा चरित्र-शोधक हैं। समय-संवत् १६६० नास-(३५६५ ) अजमेरोजी । जन्म-काल-१९३५ के लगभग। रचना-काल-१९६०। रचना-ओड़छा-राजवंश, बुंदेलखंड-वर्णन, समुद्र-वर्णन आदि अनेक छोटे-बड़े अंथ हैं। विवरण-यह महाशय चिरगाँव, जिला झांसी-निवासी मुसलमान हैं। इनके पूर्व-पुरुष भाट थे और यह वैष्णव हैं । देखकर कोई इन्हें अहिंदू नहीं कह सकता । अाशुकवि तथा सभा-चतुर हैं । औरों की बोली, बाजों आदि की ध्वनियाँ सुगमता-पूर्वक मुख से उतार सकते हैं । वर्तमान श्रोड़छा-नरेश ने ५०) मासिक नियत कर दिए हैं, और इन्हें वहाँ साल में दो ही बार जाना पड़ता है। आपका साहित्य देश-भक्ति-पूर्ण, रोचक, सरस, नव विचार-युक्त, गंभीर तथा उत्कृष्ट है। वर्तमान कवियों में प्रापका पद उच्च है। उदाहरण- अो अपार जल-राशि सर्वदा उथल-पुथल क्यों होती है ? यो उन्मादिनि, क्या क्षण-भर भी कभी नहीं तू सोती है ? देवि दूर से दीख रहा है हिल्लोलित हृदय स्पंदन ; साथ-साथ ही सुन पड़ता है कोमल कंठ करुण कंदन । आती और लौट जाती हैं भग्न भावनाएँ तेरी जाती हैं, गिरती हैं, फिर भी करती हैं फिर-फिर फेरी । क्षण-भर भी न छिपा रहता है उद्वेलित उर का उच्छ्वास अनु धार प्रतिपल पढ़ती है पैरों पर पैरों के पास । .