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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९६० भीर समै नहिं हारिए हिम्मत, नाहिं बनो जग के दुखदाई ; 'माथुर' हैं सुख के सब यार, भजो वृपभान-कुमारि-कन्हाई । नाम-( ३५६८) गयाप्रसादजी (सनेही) कानपुर-निवासी। जन्म-काल-सं० १९३५ के लगभग । रचना-काल-सं० १९६० । रचना-स्फुट छंद । विवरण-श्राप कानपुर-साहित्य-समाज में गुरुवत् माने जाते हैं । छंद भी अच्छे बनाते हैं । सुकवि के संपादक हैं। आपके पढ़ने का ढंग अच्छा है । कवि-सम्मेलनों में प्रायः सभापति होते हैं। श्रापकी रचना उच्च श्रेणी की है। त्रिशूल के नाम से उद्दड राजनीतिक साहित्य भी रचा है। नाम-(३५६६) गोपालदेवी। ग्रंथ-उपसंपादिका गृहलक्ष्मी । इनके पति भी लेखक हैं।. गोपालदेवी ने स्त्रियों के पढ़ने योग्य कई ग्रंथ लिखे हैं । नाम -( ३५७० ) देवकीनंदन मिश्र (सनान्य ) ग्राम फुटेरा (झाँसी)। जन्म-काल-सं० १९३३ । कविता-काल-सं० १९६० । विवरण-कवींद्र केशवदासजी के वंशज । ग्रंथ-(१) रामाष्टक, (२) कालिकाष्टक, (३) फुट छंद-संग्रह। 'एकन को बल तात सुमात के, एकन भ्रात सुसाह दिमान के कोड गुमान भरे, कोउ भूप बड़े बल जंग-जहान के।