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मिश्रबंधु

सं० १९६० पूर्व नूतन कोड प्रबीन मृदंग सुबीनन, कोउ महा निज गान सुतान के; 'देवकिनंदन' शरणागत, श्रीरघुनंद की श्रान के वान के। नाम-( ३५४० अ) देवनारायण क्षत्रिय सटवा, जौनपुर, हाल राज्य कालाकाँकर जिला प्रतापगढ़ ( लला)। ग्रंथ--(१) रामेश-मनोरंजनी, (२) वियोग-वारिध, (३) बंधुबिछोह, (४) पावन-पंचाटक, (५) वंशार्णव, (६) अखंड इतिहास, (७) प्रेम-पदावली, (B) गार-पारसी। जन्म-काल-सं० १९३४ । रचना-काल-सं० १९६० । विवरण-पद्य और गद्य में उत्कृष्ट काव्य किया है। गंग-तरंग उठे कच-बीच में, अंग उमा अरधंग बसी है

नंग है अंग अनंग है संग भुवंगम भूपण भाल ससी है। प्यारे लला पग सेवत ही तव सेवक की विपदा बिनसी है संकर श्राय सहाय करौ नब मेरी हँसी नहिं तेरी हँसी है। वरजो रहत नहिं गरजो करत नित, हरजो हमारो होत सुनि कैरि छम-छम ; जुगनू चमा चहु चातकी अला अलि, धुरवा धरा पै धरो दरदरी दम-दम । धहरि · घहरि श्राऐं ठहरि - ठहरि जायें, पहरि - पहरि उठे गगन में घम - धम; विज्जुगन विरही बिचारी उर चीरन को तीरन की लीन्यो मनो प्यारे लला चम-चम । नाम-(३९७१) नरदेव शास्त्री, गुरुकुल-महाविद्यालय, ज्वालापुर। .