पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/२६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२६६
२६६
मिश्रबंधु

सं० १९४५ पूर्व नूतन २६१ , उदाहरण- विराजे वे निकुंज में श्याम । चहुँदिशि ललित लताएँ लहरत कदैब छाँह अभिराम । मधुर-मधुर कालिंदी कलरव दिग स्त्रवनन सुख दैन; केकी कूक लगाय थिरकि चले वलैया लैन । कटि पट पीत किए हैं धारन अरु पटुका थहरात वनमाला चरनन लौं हजरत जन-मन-मधुप सुहात । अलकावली कपोलन छिटकी जनु कोमल शिशु व्याल, शोभित मुकुट शीश पै जगमग कलगी मुकी विशाल । सकराकृति कुंडल श्रवनन महँ भाल तिलक की रेख भाभा पसरि रही है चहुँदिशि लजत भानु छवि देख । संवत् १६४५ से ६० तक के शेष कविगण समय-संवत् १९४५ नाम-(३५७६) गिरिधारी सांतनपुरा अवधवासी। ग्रंथ-श्रीकृष्ण-चरित्र । [तृ• त्रै० रि०] समय-सं० १९४५। नाम--( ३५७७) गुरुदयाल त्रिपाठी वकील, रायबरेलो। जन्म-काल-सं० १९२५ के लगभग । रचना-काल-सं० १९४५ । विवरण- [-श्राप कई वर्ष तक 'कान्यकुब्ज हितकारी' के संपादक रहे और, इस समय रायबरेली में वकालत करते हैं। कान्यकुब्ज पत्रों में प्रायः लेख लिखा करते थे। हमारे मित्र और परम सजन पुरुष हैं। नाम--( ३५७८) गंगाबख्श ठाकुर ताल्लुकदार, रामकोट, सीतापुर। जन्म-झाल-सं० १९२० ।