पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२८
२८
मिश्रबंधु

निश्शबंधु-विनोद वजूगीतिका कोल्लअरे ठिा बोल्ल, मुग्मुणि रे कक्कोल, घने किपीदह बजइ. करणे किइ गरोला। तहि पल खज्जइ गाढ़ें, सत्र णा पिजइ, हले कलिंजर पणिग्रह, दुदुर बज्जिाइ । उसस कथुरि लिल्हा, कप्पुर लाइअइ, मालइ घाण-सालि अइ, तहिं भलु खाइअइ। पेंखण खेट करंत, शुद्धाशुद्ध रण मणिअइ, निरंशु अंग चडावि अइ, तहिं जस राव पणिअइ, मल अज़े कुंदुरु वापइ, डिडिम तहिन्न बंजि अइ । राग पटसंजरी नाड़ि शक्ति दिट धरि अखदे, अनहा डमरु बाजए वीर नादे। काल कपाली योगी पइठ अचारे, देह-नअरी विहरए एकारें । ६० श्रालि कालि घंटा नेउर चरणे, रवि-शशि-कुंडल किउ अाभरणे । ध्रु. राग-देश-मोह लाइअ छार, परम मोख लवए मुत्तिहार । ध्रु. मारिअ शासु नणंद घरे शाली, मात्र सारिश्रा काल भइ कवाली। । ध्रु० राग पटमंजरी ३६ सुण वाह तथता पहारी, मोह भंडार लुइ स अला अहारी । ध्रु. घुमइ न चेवइ सपरविभागा, सहज निदालु कालिला लांगा । . चेअण ण वेअन भर निद गेला, सअल सुफल करि सुहे सुतेला । ध्रु. स्वपणे मइ देखिल तिभुवण सुण, धोरिम अवणा गमण विहल । ध्रु. शाथि करिब जालंधरि पादे, पाक्षिण राहअ मोरि पाडिया चादे । ध्रु. नाम-(१३) तांतिपा (सिद्ध १३)। समय-सं ०८० के लगभग । ग्रंथ- -'चतुर्योगभावना' ग्रंथ तंजूर में है। विवरण- -यह महाशय उज्जैन के तंतुवाय (कोरी) थे। जालंधर-