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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण २१ , पाद के शिष्य होकर सिद्ध-संप्रदाय में हो गए । करहया भी इनके गुरु थे। उन्हीं से इनके समय का पता लगता है। उपर्युक्त ग्रंथ पुरानी मालवी या सगही में लिखा है। इनका जो उदाहरण नीचे दिया जाता है, वह चर्यागीति का है। राग पटसंजरी दालत मोर घर नाहि पड़वेषी, हाड़ी ते भात नाहि निति आवेशी । ध्रु० वेग संसार बव्हिल जान, दुहिल दुधु कि पेटे षमाय वलद विश्राएल गाविमा बाँझे, पिटा दुहिए एतिना साँझे। जो लो बुधी सो पनि बुधी, जो षो चोर लोइ साधी, निते-निते पियाला पिहेषम जुरुका ढेण्णण पाएर गीत बिरले बूझना। यह पद चांगीति में उढनपाद के नाम से है, पर इस नास का कोई सिद्ध नहीं हुआ । इसीलिये कुछ लोग इसे तंतिपाद का मानते हैं। नाम-(8) मोनपा (सिद्ध ८)। समय-सं0-80 के लगभग । ग्रंथ--'बाह्य तर बोधिचित्तबंधोपदेश' तंजूर में है। विवरण—यह महाशय मछुए थे। इनका जन्म आसाम में हुआ था। इनके पुत्र 'मत्स्येंद्रनाथ थे, जिनके शिष्य प्रसिद्ध महात्मा गोरखनाथ कहे जाते हैं । गोरखनाथजी के समय में मतभेद है। इनका पंथ अाज भी भारतवर्ष में प्रस्तुत है, जिसके माननेवाले लाखों मनुष्य हैं। इनकी रचना का उदाहरण चांगीति से दिया जाता है। उदाहरण- कहति गुरु परमार्थेर बाट, कमं कुरंग समाधिक पाट । कसल विकसिल कहिह जमरा, कमल मधु पिविवि धोके न भमरा । ३)भादेपा (सिद्ध ३२) लमय-सं० १०. के लगभग । अंथ-तंजूर में इनका कोई ग्रंथ नहीं मिला। - ताम-