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मिश्रबंधु

२१२ मिश्रवंधु-विनोद सं०११११ विवरण-राधावल्लभीय किशोरीलाल गोस्वामी के शिष्य । नाम-(३७४८) छकनलाल (चौबेलाल ) तथा मक्खनलाल, मैनपुरी। मृत्यु-काल-सं० १९७०-६० के बीच में । विवरण- -श्राप लोग माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण सहोदर भाई थे। दोनो भाइयों में छकनलालजी की कविता पोजमयी होती थी, और इन्होंने अलीपुर-षड्यंत्र के विषय पर कतिपय कवित्त लिखे थे। माखन- जालजी की कविता उपलब्ध नहीं है। पं० उमरावसिंह पांडेय, मंत्री चतुर्वेदी-पुस्तकालय, मैनपुरी का कथन है कि इन दोनो भाइयों में से पहले मृत्यु छछनलालजी की हुई, और इनके पुत्र इस समय आगरे में, अपने ननिहाल में रहते हैं। उदाहरण- चौबे लाल जाने पै न माने मन मूरख हू, लखत न देखी प्रीति रीति इक ोरी है, बजत न तारी एक हाथ सों अनारी कहैं, कीन्ही जिन प्रीति ऐसी संका हू सहोरी है। प्रीति के प्रभाव ऐसी अंग भृग शूल सह, जरत पतंग दीप - ज्योति बरजोरी है उड़ि के अकाश अंत माँहि यों निराश होति, पावत न चंद्र फेरि श्रावति चकोरी है नाम-(३७४६ ) जगन्नाथशरण, छपरा । गद्य-लेखक । ग्रंथ-(1) नीलमणि, (२) आनंदसुंदरी। नाम--( ३७१०) तिलकसिंह ठाकुर पूरनपुर, जिला कानपूर ।

जन्म-काल-सं० १९३० ।

मंथ-(.) स्फुट काव्य, (२) बारहमासी योगसागर । 3 1