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मिश्रबंधु

सं० १९६१-७१ उत्तर नूतन गया । वंगालियों को विहार से बहुत लाभ था, क्योंकि दोनो प्रांत एक में होने से विद्वत्ता आदि में अधिक उन्नत होने के कारण बंगाली लोग बिहार के भाग की नौकरियां तथा अन्य पद अधिकता से लिए हुए थे। बिहार के अलग होने से विहारियों के साथ न्याय हुश्रा, जिससे वे प्रसन्न हो गए, तथा हानि सहते हुए भी अपने पक्ष की निर्वलता के कारण बंगाली कुछ कह न सके । १९७१ से १९७५ तक महायुद्ध हुआ, जिसमें भारतीयों ने सरकार के पक्ष में लड़- कर अच्छी राजभक्ति तथा शौर्य दिखलाए । उस काल देश में इतनी अशांति न थी कि भारतीयों द्वारा सरकारी सहायता के प्रतिकूल कोई श्रावाज़ उठाता। सं० १९७१ में सरकार ने यह घोषणा की कि समय पर भारत को भी प्रतिनिधि-बल-पूर्ण राज्य मिलेगा। भारत- सचिव मांटेग्यू साहब यह जाँच करने को प्राए कि उपर्युक्त घोपणा के अनुसार भारत में प्राथमिक उन्नति कितनी हो ? इस प्रकार उत्तर नूतन परिपाटी काल में राजनीतिक प्रांदोलन आशा के कारण कुछ सधा रहा, और देश में अशांति की कमी रही । अतएव जो हिंदी- कविता इस काल बनी, उसमें अँगरेज़ों के प्रतिकूल कोई उद्दडता न थी, और पूर्व प्रारंभिक समय में जो भाव प्रबल पड़ रहे थे, वे कुछ दबे, तथा राजभक्ति के प्रतिकूल प्रजा में कटु विचार कम पड़े । इस समय नूतन परिपाटी काल के बहुतैरे सुलेखक प्रस्तुत रहे, तथा अब भी हैं, एवं दो-चार सुलेखक भारतेंदु-काल के भी वर्तमान हैं। चाहे उनमें उतनी कवित्व-भक्ति न हो, तो भी प्राचीनता के कारण उनकी मर्यादा विशेष है, और स्वयं वे तथा अन्य साहित्या- नुरागी उनकी महिमा कभी-कभी उचित से भी अधिक कहते हैं। एक यह भी बात है कि इन प्राचीन कालों के कवियों की पूर्ण महत्ता निखर चुकी है, किंतु नवीन समयवाले रचयितानों की कुछ गुरुत्ता अभी भविष्य की गोद में छिपी हुई है, क्योंकि उन्हें वृद्धमानी