पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/३२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३२६
३२६
मिश्रबंधु

उत्तर नूतन पुरुषोत्तमदास टंडन (१९६५), रामचंद्र द्विवेदी (१९६८), हितैपीजी ( १९७०) और देवीप्रसाद गुप्त (१९७५) के नाम इस काल में मुख्य हैं । यों तो देश-भक्ति की धारा ऐसे प्राबल्य से बह रही है कि हमारे बहुत अधिक लेखक इस संख्या में पा सकते हैं, फिर भी यहाँ हमने प्रति विषय के मुख्यातिमुख्य लोगों के नाम लिखे हैं । यह मुख्यता कवि विशेष द्वारा वर्णित विषयों के अनुसार मानी गई है, न कि इतरों से श्रेष्ठता के अनुसार । इनके वर्णन ग्रंथ में दिए ही गए हैं, सो यहाँ विस्तार नहीं किया जाता है। स्वामी सत्यदेव के लेख पाश्चात्य अनुभवों के कारण बहुत ही मनोरंजक एवं लाभकर हैं । मन्नन द्विवेदी एक अपूर्व रत्न था, जो हिंदी माता ने अकाल में खो दिया । इतर महाशय भी देश पर तन-मन-धन न्योछावर किए हुए हैं। इनकी कृतियों से प्रात्म-त्याग तथा देश-प्रेम के महामंत्र प्रत्येक स्थान पर प्रतिध्वनित होते हैं । इनके जीवन धन्य हैं । इन सबकी सम्मतियों तथा कार्यवाहियों से हम लोगों का मतैक्य न होने पर भी इनके स्वार्थ त्याग पर अनुराग रखना ही पड़ेगा। जैन वैद्य (१९६२) भी कुछ ऐसे ही महाशय मुख्यतया समाज-सुधारक थे, जो हिंदी की उन्नति पर सदैव असशील रहा करते थे। इनकी अकाल मृत्यु से राजपूताना- प्रांत में हिंदी-प्रचार को क्षति पहुँची है । जैन वैद्यजी तथा चंद्रधर शर्मा गुलेरी अपूर्व रल थे, जिनसे जयपूर की शोभा थी। व्याख्या. तानों में यों तो उपयुक्त तथा अन्य महाशयों में अनेकानेक सज्जन हैं, विशेषतया सत्यदेवजी, टंडनजी श्रादि, किंतु मुख्यतया नंदकिशोर शुक्ल ( १९६२) और शमानंद (१९६५) के नाम इस विषय में कथन के योग्य हैं। इस काल पत्रकारों की हिंदी में योग्यता और संख्या दोनो में अच्छी वृद्धि हुई । निम्नलिखित महाशयों के नाम इस विषय