पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/३२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३२८
३२८
मिश्रबंधु

सं० १९६१-७५ उत्तर नूतन ३२३ शून्यप्राय हैं। कारण यही है कि अनिवार्य कारणों से हमारे दैनिक पत्र तथा उनके सपादक सज-धज एवं लोक-ज्ञान में अँगरेज़ी उत्कृष्ट पत्रों तथा संपादकों के अभी बहुत पीछे हैं । फिर भी इनका प्रभाव देश-प्रेम-वृद्धि में पड़ अच्छा रहा है। इनकी शोचनीय दशा अनिवार्य कारणों से होने के कारण समाज द्वारा हमारे पत्र प्रोत्साहन योग्य अवश्य हैं । ग्रंथ-संपादकों में इस काल माणिक्यचंद्र जैन (१९६४) तथा बजरलदास (१९७२) मुख्य हैं। कई अन्य महाराय भी इस महत्कार्य में योग देते हैं, किंतु इन दोनो सजनों ने अपने प्रयत्नों में इसी की मुख्यता रखी। विविध विषय-वर्णन में गंगाप्रसाद उपाध्याय (१९६४), चंद्र- मौलि शुक्ल (१६६४ ) और श्रीकृष्णगोपाल माथुर ( १९७२ ) सुख्य समझ पड़ते हैं । रामचरित उपाध्याय ( १९६५) तथा दयाल- चंद्र गोयलीय (१९७६ ) नीतिकार हैं। दोनो अच्छे लेखक हैं। उपयोगी ग्रंथकारों में इस काल कोई नवीन नाम नहीं आता। व्यापार- संबंधी ज्ञान-बद्धन में जी० एस० पथिक ( १६७०) ने बहुत ही रलाय कार्य किया है। इनके प्रथ बड़े लोकोपयोगी हैं। विशिष्ट विषयों पर हिंदी को ऐसे सुलेखकों की श्राज श्रावश्यकता है। विज्ञान में महेशचरणसिंह (१९६५), महाबीरप्रसाद (१९६६ ) और जग- द्विहारी सेठ ( १६७१ ) के श्रम श्लाघ्य हैं। महेशचरणसिंह ने अमेरिका और जापान में शिक्षा हैं। आपने रसायन पर ग्रंथ- रचना की है। सेठजी ने बिजली पर ग्रंथ लिखकर समाज का ज्ञान बढ़ाया है, और महावीरप्रसाद ने ज्योतिष तथा विज्ञान पर अच्छे ग्रंथ रचे हैं। ये तीनो महाशय हमारे उपयोगी नथकारों में परम स्तुत्य हैं । यात्रा पर स्वामी सत्यदेव ( १९६३ ) तथा गौरीशंकर- प्रसाद ( १६६२ ) के श्लाघ्य नथ हैं। दोनो ने अमेरिका, फ़िजी श्रादि देखकर रोचक साहित्य रचा है। प्रवास पर भवानीदयाल