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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण श्रीहतवदियाने पूर्ण गिरि, जालंधरि प्रभु महासुख-जातहुँ ।” ध्रु. नाम-(३) कंकरणपाद (सिद्ध ८६)। समय -सं० १५० के लगभग । ग्रंथ-चर्यादोहाकोषगीतिका । ग्रंथ तंजूर में मिला है। विवरण-विष्णुनगर के राजवंश में उत्पन्न हुए थे, और कंबलपा- वाले परिवार के सिद्ध थे। चर्यागीति से उदाहरण दिया जाता है। कंबलपाद ११५ के थे। इससे इनका समय १५० के लगभग समझ पड़ता है। सुने सुन मिलिआ जबे, सन्मल धाम उझ्या तवें । ध्रु. आच्छु हुँ चडखण संबोही, साझा निरोह अणु अर बोही । ध्रु० विदु-णाद णहि ए पइठा, अण चाहते प्राण विणठा । ध्रु. जथा आइ सि तथा जान, माएँ थाकी सअल विहाण । ध्रु. भणई फैकण कल एल सादें, सर्व विच्छरिल तधता नादें । ध्रु. (1) तिलोपा (सिद्ध २२)। समय-सं० १५५ के लगभग। ग्रंथ-अंतरबाह्यविषयनिवृत्ति-भावनाक्रम, करुणाभावनाधिष्ठान, दोहा-कोष और महामुद्रोपदेश । विवरण-इनका जन्मस्थान भगुनगर (? बिहार ) था । यह महाशय गुह्यापा के शिष्य तथा कराहपा इनके दादा-गुरु थे । विक्रम- शिला के सिद्ध नारोपा इनके पट्टशिष्य थे। इनके ऊपर लिखे मगही भाषा के ग्रंथ तंजूर में सुरक्षित हैं । उदाहरण स संवेअन तंतफल, तिलोपाए भणंति जो मण गोअर गोइया, सो परमथे न होति । नाम-(3) नाड( नारो)पा (सिद्ध २०)। नाम- ।