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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं०१६६१-७२ है। कथोपकथन कहीं-कहीं रोचकता को छोड़कर काल्पनिकता से दूषित हो गए हैं । पंतजी की वरमाला अच्छे नाटकों में से है। भाषा तथा गीत काव्य दोनो इसमें श्रेष्ठ हैं। ग्रंथ उच्च कोटि का है, किंतु प्रसाद तथा भारतेंदु के उत्कृष्ट नाटकों के पीछे रह जाता है। पंतजी यदि इस विषय पर चित्त लगावें, तो उत्कृष्ट नाट्यकार हो सकते हैं । प्रेमचंद के संग्राम और कबला नाटक हैं। कर्बला उच्च कोटि का नथ है, जिसमें मुसलमानी मत से सहृदयता बहुत सराहनीय है । नाटक साद्यत निर्दोष उतर गया है। चरित्र-चित्रण भी ठीक है । माधव शुक्ल का महाभारत-नाटक उत्कृष्ट है। उसकी भाषा प्रांजल तथा प्रसाद-पूर्ण है, और पद्य भी सुंदर हैं । उग्र का ईसा भी बहुत ही प्रांजल और सुपाच्य है। उत्तर नूतन परिपाटी के कुछ नाटक प्रौढ़ हैं। इस विभाग की इस काल अच्छी अंग-पुष्टि उपन्यासकारों में इस काल निम्न लिखित प्रधान हैं-हरीकृष्ण जौहर (१९६२), आत्माराम देवकर ( १९१२), ओंकारनाथ बाजपेयी ( १९६३ ), प्रेमचंदजी ( १६६५), वृदावनलाल वर्मा (१६७०), अनुपलाल (१९७५), धन्यकुमार जैन (१९७५), प्यारेलाल गुप्त ( १९७१ ) तथा बेचन शर्मा 'उग्र' (१९७५)। धन्यकुमार जैन अनुवादकर्ता गल्पकार हैं। ओंकारनाथ बाजपेयी का श्रम स्तुत्य है। उग्रजी बड़े सबल तथा यथार्थ लेखक हैं। इनकी लेखन-शैली बहुत स्तुत्य है, किंतु अश्लील विषयों में ज्ञान-बद्धन करते-करते कभी आप इतना दूर निकल जाते हैं कि समझ पड़ने लगता है कि आपको उसी वर्णन में मज़ा आता है। यदि ऐसे विषयों को छोड़कर श्राप सद्विषयों पर श्रम करें, तो अच्छी ख्याति के योग्य हो जायें। अब आप सिनेमा में चले गए हैं। प्रेमचंदजी हमारे उपन्यासकारों में सर्वोत्कृष्ट समझे जाते हैं। इन्होंने लौकिक